मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
Pages
(Move to ...)
Home
प्रकृति की कविताएं
दार्शनिकता
छंदयुक्त कविताएँ
प्रेम कविताएँ
स्त्री विमर्श
सामाजिक कविता
▼
Saturday, 16 June 2018
चाँद हूँ मैं
›
मैं चाँद हूँ आसमाँ के दामन से उलझा बदरी की खिड़कियों से झाँकता चाँदनी बिखराता हूँ मुझे न काटो जाति धर्म की कटार से मैं शाश्वत...
14 comments:
पापा
›
जग सरवर स्नेह की बूँदें भर अंजुरी कैसे पी पाती बिन " पापा " पीयूष घट आप सरित लहर में खोती जाती प्लावित तट पर बिना पात्...
15 comments:
Tuesday, 12 June 2018
अच्छा नहीं लगता
›
अश्कों का आँख से ढलना हमें अच्छा नहीं लगता तड़पना,तेरा दर्द में जलना हमें अच्छा नहीं लगता भिगाती है लहर आकर, फिर भी सूखा ये मौसम ...
20 comments:
Saturday, 9 June 2018
भरा शहर वीराना है
›
पहचाने चेहरे हैं सारे क्यूँ लगता अंजाना है। उग आये हैं कंक्रीट वन भरा शहर वीराना है। बहे लहू जिस्मों पे ख़ंजर न दिखलाओ ऐसा म...
20 comments:
Monday, 4 June 2018
विनाश की आहट
›
5 जून विश्व पर्यावरण दिवस पर फिर से एक बार प्रभावशाली स्लोगन जोर-जोर से चिल्लायेगे,पेड़ों के संरक्षण के भाषण,बूँद-बूँद पानी की कीमत पहचान...
12 comments:
Saturday, 2 June 2018
कौन सा रूप तुम्हारा?
›
लिलार से टपकती पसीने की बूँद अस्त-व्यस्त बँधे केश का जूड़ा हल्दी-तेल की छींटे से रंगा हरा बाँधनी कुरता एक हाथ में कलछी और द...
17 comments:
Wednesday, 30 May 2018
प्रेम संगीत
›
जबसे साँसों ने तुम्हारी गंध पहचानानी शुरु की है तुम्हारी खुशबू हर पल महसूस करती हूँ हवा की तरह, ख़ामोश आसमां पर बादलों से ब...
12 comments:
Sunday, 27 May 2018
क्या है प्रेम..?
›
चित्र: साभार गूगल आँख मूँदें तुम्हारे एहसास में गुम जब भी चाहती हूँ तुम्हारी आत्मा से प्रेम करना तुम्हारे देह में उलझ कर रह जा...
20 comments:
‹
›
Home
View web version