मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 3 November 2018
माँ हूँ मैं
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गर्व सृजन का पाया बीज प्रेम अंकुराया कर अस्तित्व अनुभूति सुरभित मन मुस्काया स्पंदन स्नेहिल प्यारा प्रथम स्पर्श तुम्हारा ...
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Monday, 29 October 2018
मन मेरा तुमको चाहता है
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गिरह प्रश्न सुलझा जाओ प्रियतम तुम ही समझा जाओ क्यूँ साथ तुम्हारा भाता है? नित अश्रु अर्ध्य सींचित होकर प्रेम पुष्प हरियाता ...
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Tuesday, 23 October 2018
शरद पूर्णिमा
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रिमझिम-रिमझिम बरसी चाँदनी, तन-मन,रून-झुन, बजे रागिनी। पटल नील नभ श्वेत नीलोफर, किरण जड़ित है शारद हासिनी। परिमल श्यामल कुंतल बा...
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Sunday, 14 October 2018
मन उलझन
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एकाकीपन की बेला में हिय विरहन-सा गाता है धागे भावों के न सुलझे मन उलझन में पड़ जाता है जीवन का गणित सरल नहीं चख अमृत घट बस ...
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Wednesday, 10 October 2018
अनुभूति
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माँ का ध्यान हृदय सदा शान्ति सुधा बरसाती मलयानिल श्वासों में घुल हिया सुरभित कर जाती मौन मगन दैदीप्त पुंज मन भाव विह्वल खो ...
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Saturday, 6 October 2018
जीवन रण में
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कुरुक्षेत्र के जीवन रण में गिरकर फिर चलना सीखो कंटक राहों के अनगिन सह छिलकर भी पलना सीखो लिए बैसाखी बेबस बनकर कुछ पग में ...
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Sunday, 30 September 2018
गहरा रंग
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उँघती भोर में चिड़ियों के कलरव के साथ आँखें मिचमिचाती ,अलसाती चाय की महक में घुली किरणों की सोंधी छुअन पत्तों ,फूलों,दूबों पर...
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Thursday, 27 September 2018
तुम खुश हो तो अच्छा है
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मन दर्पण को दे पत्थर की भेंट तुम खुश हो तो अच्छा है मुस्कानों का करके गर आखेट तुम खुश हो तो अच्छा है मरु हृदय में ढूँढता छाय...
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