मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Thursday, 3 January 2019
हर क्षण से.....
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नवतिथि का स्वागत सहर्ष नव आस ले आया है वर्ष सबक लेकर विगत से फिर पग की हर बाधा से लड़कर जीवन में सुख संचार कर लो हर क्षण से ...
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Tuesday, 25 December 2018
धर्म
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सोचती हूँ कौन सा धर्म विचारों की संकीर्णता की बातें सिखलाता है? सभ्यता के विकास के साथ मानसिकता का स्तर शर्मसार करता ...
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Wednesday, 19 December 2018
चाँद..
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तन्हाई की आँच में टुकड़ों में गल रहा है चाँद, दामन से आसमाँ के देखो! पिघल रहा है चाँद। छत की मुंडेरों पर झुकी हैंं पलके...
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Monday, 17 December 2018
दिसम्बर
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दिसम्बर (१) गुनगुनी किरणों का बिछाकर जाल उतार कुहरीले रजत धुँध के पाश चम्पई पुष्पों की ओढ़ चुनर दिसम्बर मुस्कुराया ...
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Wednesday, 12 December 2018
एहसास जब.....
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एहसास जब दिल में दर्द बो जाते हैं तड़पता देख के पत्थर भी रो जाते हैं ऐसा अक्सर होता है तन्हाई के मौसम में पलकों से गिर के ख़्वाब ...
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Saturday, 8 December 2018
स्वप्न
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तन्हाइयों में गुम ख़ामोशियों की बन के आवाज़ गुनगुनाऊँ ज़िंदगी की थाप पर नाचती साँसें लय टूटने से पहले जी जाऊँ दरबार में ठुमरि...
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Wednesday, 28 November 2018
नेह की डोर
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मन से मन के बीच बंधी नेह की डोर पर सजग होकर कुशल नट की भाँति एक-एक क़दम जमाकर चलना पड़ता है टूटकर बिखरे ख़्वाहिशों के सित...
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Sunday, 25 November 2018
थोड़ा-सा रुमानी हो लें
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ज़िंदगी की उदासियों में चुटकी भर रंग घोलें अश्क में मुहब्बत मिला कर थोड़ा-सा रुमानी हो लें दर्द को तवज्ज़ो कितना दें दामन र...
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