मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 18 January 2019
मन मेरा
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मन मेरा औघड़ मतवाला पी प्रेम भरा हाला प्याला मन मगन गीत गाये जोगी चितचोर मेरा मुरलीवाला मंदिर , मस्जिद न गुरुद्वारा गिरिजा ...
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Wednesday, 16 January 2019
समानता
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देह की परिधियों तक सीमित कर स्त्री की परिभाषा है नारेबाजी समानता की। दस हो या पचास कोख का सृजन उसी रजस्वला काल ...
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Saturday, 12 January 2019
शब्द
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मौन हृदय के आसमान पर जब भावों के उड़ते पाखी, चुगते एक-एक मोती मन का फिर कूजते बनकर शब्द। कहने को तो कुछ भी कह लो न कहना जो...
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Wednesday, 9 January 2019
दर्दे दिल...
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दर्दे दिल की अजब कहानी है होंठों पर मुस्कां आँखों में पानी है जिनकी ख़्वाहिश में गुमगश्ता हुये उस राजा की कोई और रानी है ...
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Thursday, 3 January 2019
हर क्षण से.....
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नवतिथि का स्वागत सहर्ष नव आस ले आया है वर्ष सबक लेकर विगत से फिर पग की हर बाधा से लड़कर जीवन में सुख संचार कर लो हर क्षण से ...
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Tuesday, 25 December 2018
धर्म
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सोचती हूँ कौन सा धर्म विचारों की संकीर्णता की बातें सिखलाता है? सभ्यता के विकास के साथ मानसिकता का स्तर शर्मसार करता ...
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Wednesday, 19 December 2018
चाँद..
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तन्हाई की आँच में टुकड़ों में गल रहा है चाँद, दामन से आसमाँ के देखो! पिघल रहा है चाँद। छत की मुंडेरों पर झुकी हैंं पलके...
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Monday, 17 December 2018
दिसम्बर
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दिसम्बर (१) गुनगुनी किरणों का बिछाकर जाल उतार कुहरीले रजत धुँध के पाश चम्पई पुष्पों की ओढ़ चुनर दिसम्बर मुस्कुराया ...
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