मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 15 February 2019
असमर्थ हूँ मैं....
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व्यर्थ क़लम का रोना-धोना न चीख़ का कोई अर्थ हू्ँ मैं दर्द उनका महसूस करूँ कुछ करने में असमर्थ हूँ मैं न हृदय लगा के रो पाई न च...
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Thursday, 14 February 2019
बदसूरत लड़की
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वो नहीं सँवरती प्रतिबिंब आईने में बार-बार निहारकर बालों को नहीं छेड़ती लाली पाउडर ड्रेसिंग टेबल के दराजों में सूख जाते है...
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Wednesday, 13 February 2019
ग़रीबी-रेखा
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जीवन रेखा,मस्तिष्क रेखा, भाग्य रेखा सबकी हथेलियों में होते हैं ऐसा एक ज्योतिष ने समझाया ग़रीबी-रेखा कहाँ होती है? यह पूछने पर ...
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Monday, 11 February 2019
फिर आया बसंत
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धूल -धूसरित आम के पुराने नये गहरे हरे पत्तों के बीच से स्निगध,कोमल,नरम,मूँगिया लाल पत्तियों के बीच हल्के हरे रंग से गझिन मोतियों सी गूँ...
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Friday, 8 February 2019
बूँदभर गंगाजल
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मौन के सूक्ष्म तंतुओं से अनवरत रिसता, टीसता,भीगता असहज,असह्य भाव उलझकर खोल की कठोर ,शून्य दीवारों में बेआवाज़ कराहता, ...
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Thursday, 7 February 2019
तुम ही कहो
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हाँ ,तुम सही कह रहे हो फिर वही घिसे-पिटे प्रेमाव्यक्ति के लिए प्रयुक्त अलंकार,उपमान,शब्द शायद शब्दकोश सीमित है; प्रेम के लिये...
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Tuesday, 5 February 2019
विश्लेषण
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कभी सोचा न हो तो सोचना जरूर बहुत ज्यादा विश्लेषण छानबीन करती नजरें जरूरत से ज्यादा जागरुकता कहीं खत्म न कर दे आपके प्रि...
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Friday, 1 February 2019
सुन...
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नक़्श आँगन के अजनबी,कहें सदायें सुन हब्स रेज़ा-रेज़ा पसरा,सीली हैं हवायें सुन धड़कन-फड़कन,आहट,आहें दीद-ए-नमनाक दिल के अफ़सानें में...
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