मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 7 June 2019
रात
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अक्सर जब शाम की डोली थके हुये घटाओं के शानों से उतरती है छनकती चाँदनी की पाजेब से टूटकर घुँघरू ख़्वाबों के आँगन बिखरती है ...
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Tuesday, 4 June 2019
तुम्हारी आँखें
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ठाठें मारता ज्वार से लबरेज़ नमकीन नहीं मीठा समुंदर तुम्हारी आँखें तुम्हारे चेहरे की मासूम परछाई मुझमें धड़कती है प्रतिक्षण ...
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Monday, 3 June 2019
सावित्री
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वैज्ञानिक विश्लेषण में सारहीन,अटपटा ... फिर भी .. कच्चे धागे लपेटकर बरगद की फेरी नाक से माँग तक टीका गया पीपा सिंदूर, आँच...
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Monday, 27 May 2019
तुम हो तो...
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तुम हो तो तार अन्तर के गीत मधुर गुनगुनाती है प्रतिपल उठती,प्रतिपल गिरती साँसें बुलबुल-सी फुदक-फुदककर शोर मचाती है। बिना छु...
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Wednesday, 15 May 2019
गुलमोहर
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तपती गर्मी में आकुल,व्यथित मानव मन और आँखों को शीतलता प्रदान करता गुलमोहर प्रकृति का अनुपम उपहार है। सूखी कठोर धरती पर अपनी लंबी शा...
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Monday, 13 May 2019
जानती हूँ....
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मौन दिन के उदास पन्नों पर एक अधूरी कहानी लिखते वक़्त उदास आँखों की गीली कोर पोंछकर उंगली के पोर से हथेलियों पर फैलाकर एहसास को, ...
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Saturday, 11 May 2019
सुनो न माँ....
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मातृ दिवस का कितना औचित्य है पता नहीं..। माँ तो हमेशा से किसी भी बच्चे के लिए उसके व्यक्तित्व का अस्तित्व का हिस्सा है न...फिर एक दिन ...
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Thursday, 9 May 2019
प्रतीक्षा
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बैशाख की बेचैन दुपहरी दग्ध धरा की अकुलाहट, सुनसान सड़कों पर चिलचिलाती धूप बरगद के पत्तों से छनकती चितकबरी-सी तन को भस्म ...
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