मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Friday, 29 November 2019
कब तक...?
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फिर से होंगी सभाएँ मोमबत्तियाँ चौराहों पर सजेंगी चंद आक्रोशित नारों से अख़बार की सुर्खियाँ फिर रंगेंगी हैश टैग में स...
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Tuesday, 26 November 2019
ग़ुलाम
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चित्र: साभार गूगल ------ बेबस, निरीह,डबडबाई आँखें नीची पलकें,गर्दन झुकाये भींचे दाँतों में दबाये हृदय के तूफां घसीटने को मजबू...
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Saturday, 23 November 2019
परदेशी पाहुन
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चित्र:साभार गूगल (१)★★★★★★ अपनी जड़ों में वापस लौटने का, स्वप्न परों में बाँधे आते हैं परदेशी नवजीवन की चाह में आस की डो...
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Thursday, 21 November 2019
संस्कार संक्रमण
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हाय! हम क्यों नहीं सोच रहे? अपने भविष्य की सीढ़ियों को अपने आने वाली पीढियों को कैसी धरोहर हम सौंप रहे? धर्म और शिक्षा में रा...
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Sunday, 17 November 2019
मैं भूल जाना चाहती हूँ
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भुलक्कड़ रही सदा से बचपन से ही कभी याद न रख सकी सहेज न सकी कोई कड़ुवाहट सखियों से झगड़ा सगे या चचेरे-ममेरे भाई बहनों से तीखी तकरार ...
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Wednesday, 13 November 2019
इन खामोशियों में...
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इन ख़ामोशियों में बड़ी बेक़रारी है, ग़ुजरते लम्हों में ग़म कोई तारी है। गुज़रता न था एक पल जिनका, अपनी परछाई भी उन पे भारी है। ...
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Sunday, 10 November 2019
इंद्रधनुष
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ओ मेरे मनमीत लगभग हर दिन तुमसे नाराज़ होकर ख़ुद को समेटकर विदा कर आती हूँ हमारा प्रेम.... फिर कभी तुम्हें अपनी ख़ा तिर ...
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Thursday, 31 October 2019
सोच ज़माने की
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लच्छेदार बातों के सुंदर खोल में बसा आधुनिक युग की बेटियों का संसार मुट्ठीभर प्रगतिशील बेटियों से हटाकर आँखें कल्पनाओं के तिलिस्म क...
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