मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Saturday, 23 January 2021
चाँद और रात
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(१) स र्द रात गर्म लिहाफ़ में कुनमुनाती, करवट बदलती छटपटाती नींद पलकों से बगावत कर बेख़ौफ़ निकल पड़ती है कल्पनाओं के गलियारों में, दबे पाँव चुप...
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Tuesday, 19 January 2021
चिड़िया
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धरती की गहराई को मौसम की चतुराई को भांप लेती है नन्ही चिड़िया आगत की परछाई को। तरू की हस्त रेखाओं की सरिता की रेतील बाहों की बाँच लेती है पात...
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Friday, 15 January 2021
सैनिक
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हरी-भूरी छापेवाली वर्दियों में जँचता कठोर प्रशिक्षण से बना लोहे के जिस्म में धड़कता दिल, सरहद की बंकरों में प्रतीक्षा करता होगा मेंहदी की सुग...
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Monday, 11 January 2021
चमड़ी के रंग
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पूछना है अंतर्मन से चमड़ी के रंग के लिए निर्धारित मापदंड का शाब्दिक विरोधी हैंं हम भी शायद ...? आँखों के नाखून से चमड़ी खुरचने के बाद बहती चि...
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Friday, 1 January 2021
संभावनाओं की प्रतीक्षा
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बुहारकर फेंके गये तिनकों के ढेर चोंच में भरकर चिड़िया उत्साह से दुबारा बुनती है घरौंदा। कतारबद्ध,अनुशासित नन्हीं चीटियाँ बिलों के ध्वस्त...
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Tuesday, 22 December 2020
विस्मृति ...#मन#
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मन पर मढ़ी ख़्यालों की जिल्द स्मृतियों की उंगलियों के छूते ही नयी हो जाती है, डायरी के पन्नों पर जहाँ-तहाँ बेख़्याली में लिखे गये आधे-पूरे नाम...
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Wednesday, 16 December 2020
'अजूबा' किसान
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चित्र:मनस्वी सदियों से एक छवि बनायी गयी है, चलचित्र हो या कहानियां हाथ जोड़े,मरियल, मजबूर ज़मींदारों की चौखट पर मिमयाते,भूख से संघर्षरत किसान...
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Saturday, 12 December 2020
पहले जैसा
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कोहरे की रजाई में लिपटा दिसंबर, जमते पहाड़ों पर सर्दियाँ तो हैं पर, पहले जैसी नहीं...। कोयल की पुकार पर उतरता है बसंत आम की फुनगी से मनचले भ...
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