मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
Pages
(Move to ...)
Home
प्रकृति की कविताएं
दार्शनिक
छंदयुक्त कविताएँ
प्रेम कविताएँ
स्त्री विमर्श
सामाजिक कविता
▼
Thursday, 17 March 2022
रंग
›
भोर का रंग सुनहरा, साँझ का रंग रतनारी, रात का रंग जामुनी लगता है...। हया का रंग गुलाबी, प्रेम का रंग लाल, हँसी का रंग हरा लगता है...। कल्प...
10 comments:
Wednesday, 9 March 2022
क्यों अधिकार नहीं...
›
समय के माथे पर पड़ी झुर्रियाँ गहरी हो रही हैं। अपनी साँसों का स्पष्ट शोर सुन पाना जीवन-यात्रा में एकाकीपन के बोध का सूचक है। इच्छाओं की चार...
15 comments:
Thursday, 24 February 2022
युद्ध...
›
युद्ध की बेचैन करती तस्वीरों को साझा करते न्यूज चैनल, समाचारों को पढ़ते हुए उत्तेजना से भरे हुए सूत्रधार शांति-अशांति की भविष्यवाणी, समझौ...
16 comments:
Sunday, 13 February 2022
प्रेम.....
›
बनते-बिगड़ते,ठिठकते-बहकते तुम्हारे मन के अनेक अस्थिर, जटिल भाव के बीच सबसे कोमल स्थायी एहसास बनकर निरंतर तुम्हारे साथ रहना चाहती हूँ मैं... ...
21 comments:
Thursday, 10 February 2022
एकमात्र विकल्प
›
रश्मि पुंज निस्तेज है मुखौटों का तेज है सुन सको तो सुनो चेहरा पढ़ने में असमर्थ आँखों का मूक आर्तनाद। झुलस रही है तिथियाँ श्रद्धांजलि रीत...
22 comments:
Tuesday, 25 January 2022
भविष्य के बच्चे
›
1949 में जन्मे बच्चों की गीली स्मृतियों में उकेरे गये कच्ची मिट्टी, चाभी वाले, डोरी वाले कुछ मनोरंजक खिलौने, फूल,पेड,तितलियाँ, चिडियों,घोंसल...
11 comments:
Wednesday, 19 January 2022
बेचैनियाँ
›
हर अभिव्यक्ति के बाद बची हुई अभिव्यक्ति में भावों की गहराई में छुपी अव्यक्तता की अनुभूति सदैव जताती है अभिव्यक्ति के अधूरेपन के समुच्चय को अ...
34 comments:
Wednesday, 12 January 2022
आह्वान.. युवा
›
गर जीना है स्वाभिमान से मनोबल अपना विशाल करो न मौन धरो ओ तेजपुंज अब गरज उठो हुंकार भरो। बाधाओं से घबराना कैसा? बिन लड़े ही मर जाना कैसा? तुम ...
15 comments:
‹
›
Home
View web version