मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Wednesday, 26 July 2023
संवेदना
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तेजी से बदलते परिदृश्य एक के ऊपर लदे घटनाक्रमों से भ्रमित पथराई स्मृतियों को पीठ पर टाँगकर बीहड़ रास्तों पर दौड़ती,मीलों हाँफती लहुलुहान पीड़...
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Thursday, 20 July 2023
धिक्कार है....
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धिक्कार है ऐसी मर्दांनगी पर घृणित कृत्य ऐसी दीवानगी पर। भीड़ से घिरी निर्वस्त्र स्त्री, स्तब्ध है अमानुषिक दरिंदगी पर । गौरवशाली देश हमारा झू...
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Thursday, 22 June 2023
आसान है शायद...
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हिंदी,अंग्रेजी, उर्दू,बंग्ला, उड़िया,मराठी भोजपुरी, मलयाली, तमिल,गुजराती आदि,इत्यादि ज्ञात,अज्ञात लिखने वालों की अनगिनत है जमात कविता,लेख ,कथ...
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Thursday, 11 May 2023
निर्दोष
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धर्म को पुष्ट करने हेतु आस्था की अधिकता से सुदृढ हो जाती है कट्टरता .... संक्रमित विचारों की बौछारों से से सूख जाता है दर्शन संकुचित मन की ...
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Sunday, 22 January 2023
तितलियों के टापू पर...
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तितलियों के टापू पर मेहमान बन कर जाना चाहती हूँ चाहती हूँ पूछना उनसे- बेफ्रिक्र झूमती पत्तियों को चिकोटी काटकर, खिले-अधखुले फूलों के चटकी...
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Wednesday, 12 October 2022
मौन शरद की बातें
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साँझ के बाग में खिलने लगीं काली गुलाब-सी रातें। चाँदनी के वरक़ में लिपटी मौन शरद की बातें। चाँद का रंग छूटा चढ़ी स्वप्नों पर कलई, हवाओं की...
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Wednesday, 10 August 2022
संदेशवाहक
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अनगिनत चिडियाँ भोर की पलकें खुरचने लगीं कुछ मँडराती रही पेडों के ईर्द-गिर्द कुछ खटखटाती रही दरवाज़ा बादलों का...। कुछ हवाओं संग थिरकती हुई ग...
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Sunday, 17 July 2022
बचा है प्रेम अब भी...।
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आहट तुम्हारी एहसास दिलाती है, मेरी साँसों में बचा है प्रेम अब भी...। काँपती स्मृतियों में स्थिर तस्वीर भीड़ में तन्हाई की गहरी लकीर, हार जाती...
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