मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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Monday, 22 April 2024
खो रहा मेरा गाँव
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खो रहा मेरा गाँव --------- पंछी और पथिक ढूँढ़ते सघन पेड़ की छाँव, रो-रो गाये काली चिड़िया खो रहा मेरा गाँव। दहकती दुपहरी ढूँढ़ रही मिलता नहीं ह...
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Sunday, 3 March 2024
मेरी चेतना
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मेरी चेतना -------- अनगिनत पहाड़ ऐसे हैं जो मेरी कल्पनाओं में भी समा न पाये, असंख्य नदियों की जलधाराओं के धुंध के तिलिस्म से वंचित हूँ; बीहड़...
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Thursday, 15 February 2024
क्या फर्क पड़ जायेगा
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क्या फर्क पड़ जायेगा -------- हर बार यही सोचती हूँ क्यों सोचूँ मैं विशेष झुण्ड की तरह निपुणता से तटस्थ रहूँगी... परंतु घटनाक्रमों एवं विचारो...
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Monday, 12 February 2024
मन
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मन ---- हल्की,गहरी, संकरी,चौड़ी खुरदरी,नुकीली, कंटीली अनगिनत आकार-प्रकार की वर्जनाओं के नाम पर खींची सीमा रेखाओं के इस पार से लोलुप दृष्टि से...
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Monday, 1 January 2024
इस बरस
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इस बरस नयी तिथियों की उँगली थामे समय की अज्ञात यात्रा पर चलना चाहती हूँ। इस बरस का हर दिन खुशियों की पोटली से बदलना चाहती हूँ। मैं बदलना चा...
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Wednesday, 27 December 2023
यादों की पोटली से....
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ताजमहल समेटकर नयी-पुरानी नन्हीं-नन्हीं ख्वाहिशें, कोमल अनछुए भाव, पाक मासूम एहसास, कपट के चुभते काँटे विश्वास के चंद चिथड़़े, अवहेलना की गू...
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Thursday, 30 November 2023
सर्दी का एक दिन
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सर्दियों की अंधेरी भोर में ठंडी हवा कराह रही है, पृथ्वी लोहे की तरह कठोर है, पानी पत्थर की तरह; जिसके हल्के से छू भर जाने से देह सिहरने लगा ...
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Thursday, 14 September 2023
हिन्दी..
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चित्र:सौजन्य समाचार पत्र गर्वित साहित्यिक इतिहास की साक्षी, भावों की मधुरिम परिभाषा है हिन्दी। विश्वपटल पर गूँजें ऋचाएँ ससम्मान, राष्ट्र की ...
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