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Monday, 12 February 2024

मन


मन
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हल्की,गहरी,
संकरी,चौड़ी
खुरदरी,नुकीली,
कंटीली
अनगिनत
आकार-प्रकार की
वर्जनाओं के नाम पर
खींची सीमा रेखाओं के
इस पार से लोलुप दृष्टि से
छुप-छुप कर ताकता
उसपार
मर्यादा के भारी परदों को
बार-बार सरकाता,लगाता,
अपने तन की वर्जनाओं के
छिछले बाड़ में क़ैद
छटपटाता
लाँघकर देहरी
सर्वस्व पा लेने के
आभास में ख़ुश होता
उन्मुक्त मन
वर्जित प्रदेश के
विस्तृत आकाश में
उड़ता रहता है स्वच्छंद।
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श्वेता


10 comments:

  1. मन
    मर्यादा के भारी परदों को
    बार-बार सरकाता,लगाता
    बेहतरीन सोच
    आभार
    सादर

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  2. मन के स्वरूप को परिभाषित करता बहुत सुन्दर सृजन श्वेता जी ! स्नेहिल नमस्कार !

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  3. उन्मुक्त मन
    वर्जित प्रदेश के
    विस्तृत आकाश में
    उड़ता रहता है स्वच्छंद।

    'मन" इसके उड़ने की तो कोई सीमा ही नहीं, बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति श्वेता जी 🙏

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  4. आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 फरवरी 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    अथ स्वागतम शुभ स्वागतम।

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  5. मन निर्बंध और उन्मुक्त है! ये वर्जनाओं को क्या जाने! अपनी दुनिया में एकाकी उड़ान भरना उसका प्रिय शगल है! हमेशा की तरह एक शानदार रचना प्रिय श्वेता!!

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  6. वर्जना भला कहाँ स्वीकार्य है इसे..
    उन्मुक्त जो होता है स्वभाव से
    मन पर अद्भुत एवं लाजवाब सृजन
    अनगिनत
    आकार-प्रकार की
    वर्जनाओं के नाम पर
    खींची सीमा रेखाओं के
    इस पार से लोलुप दृष्टि से
    छुप-छुप कर ताकता
    वाह!!!!

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  7. जीवनरेखा के अनंत परिदृश्यों को दिखातीं आपकी रचनाओं कैसे एक और रचना। बहुत बधाई प्रिय मित्र।

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।