मन
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हल्की,गहरी,
संकरी,चौड़ी
खुरदरी,नुकीली,
कंटीली
अनगिनत
आकार-प्रकार की
वर्जनाओं के नाम पर
खींची सीमा रेखाओं के
इस पार से लोलुप दृष्टि से
छुप-छुप कर ताकता
उसपार
मर्यादा के भारी परदों को
बार-बार सरकाता,लगाता,
अपने तन की वर्जनाओं के
छिछले बाड़ में क़ैद
छटपटाता
लाँघकर देहरी
सर्वस्व पा लेने के
आभास में ख़ुश होता
उन्मुक्त मन
वर्जित प्रदेश के
विस्तृत आकाश में
उड़ता रहता है स्वच्छंद।
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श्वेता
वाह
ReplyDeleteमन
ReplyDeleteमर्यादा के भारी परदों को
बार-बार सरकाता,लगाता
बेहतरीन सोच
आभार
सादर
मन के स्वरूप को परिभाषित करता बहुत सुन्दर सृजन श्वेता जी ! स्नेहिल नमस्कार !
ReplyDeleteउन्मुक्त मन
ReplyDeleteवर्जित प्रदेश के
विस्तृत आकाश में
उड़ता रहता है स्वच्छंद।
'मन" इसके उड़ने की तो कोई सीमा ही नहीं, बहुत ही सुन्दर अभिव्यक्ति श्वेता जी 🙏
आपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" बुधवार 14 फरवरी 2024को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteअथ स्वागतम शुभ स्वागतम।
बेचारा मन
ReplyDeleteबेहतरीन
ReplyDeleteमन निर्बंध और उन्मुक्त है! ये वर्जनाओं को क्या जाने! अपनी दुनिया में एकाकी उड़ान भरना उसका प्रिय शगल है! हमेशा की तरह एक शानदार रचना प्रिय श्वेता!!
ReplyDeleteवर्जना भला कहाँ स्वीकार्य है इसे..
ReplyDeleteउन्मुक्त जो होता है स्वभाव से
मन पर अद्भुत एवं लाजवाब सृजन
अनगिनत
आकार-प्रकार की
वर्जनाओं के नाम पर
खींची सीमा रेखाओं के
इस पार से लोलुप दृष्टि से
छुप-छुप कर ताकता
वाह!!!!
जीवनरेखा के अनंत परिदृश्यों को दिखातीं आपकी रचनाओं कैसे एक और रचना। बहुत बधाई प्रिय मित्र।
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