Tuesday, 25 January 2022

भविष्य के बच्चे


1949 में जन्मे बच्चों की
गीली स्मृतियों में उकेरे गये
कच्ची मिट्टी, चाभी वाले,
डोरी वाले कुछ मनोरंजक खिलौने,
फूल,पेड,तितलियाँ,
चिडियों,घोंसले,परियाँ,
सूरज को दादा
और चाँद को मामा कहने वाली
मासूम कविताएँ
स्कूल,चौराहे, गली-कूचों में
शान से फहरते तिरंगे और
स्वतंत्रता के लिए बलिदान हुए
 शौर्यवीरों की
गौरवशाली भावपूर्ण 
कहानियाँ बोयी गयी थी।
सौहार्दपूर्ण वातावरण में
जाति-धर्म से परे
आँख में भरे गये थे
मनुष्यता की गुणवत्ता वाले
राष्ट्रहित सर्वोपरि का मंत्र जापते
सुखी,संपन्न आह्लाद से लबालब
मूल्यवान भविष्य के स्वप्न...।

धीरे-धीरे बचपन से
कच्ची मिट्टी सूख गयी
चाभी की जगह
बैटरी वाली कार,
खतरनाक बंदूकों ने ले लिए,
चिडियों,तितलियों,फूल और
पेडों को तस्वीरों में कैद कर 
चाँद और सूरज की
रोशनी में लटकाकर
कविताओं से निकालकर
वैज्ञानिक परीक्षण के लिए
भेज दिया गया,
आज़ादी का महत्व,
बलिदानों की कहानियाँ
और बलिदानियों का
आलोचनात्मक विश्लेषण,
महत्वपूर्ण दिवस और तिथियाँ
सामान्य ज्ञान की किताबों तक
सीमित होना ,झंडोत्तोलन का
छुट्टी का एक दिन की तरह
औपचारिक हो जाना
चिंताजनक है।

किंतु
सोचती हूँ...
स्वकेंद्रित जीवन 
स्वनिर्माण सर्वोपरि का
जन्मघुट्टी पीते बचपने के ढेर से अलग
कुछ बच्चों का
चीजों को यथावत स्वीकार न करना,
विषयों का तार्किक आकलन करना
आविष्कारक पीढ़ी का
पेंसिल की नोंक रगड़कर
दुनिया के नक्शे पर लिखना
ग्लोबल गाँव,
जाति-धर्म को ख़ारिज करना,
 सामाजिक आडंबरों  
पर व्यवहारिक प्रश्न पूछना
मानवीय मूल्यों के प्रति संवेदनशील होना
छब्बीस जनवरी के परेड का
लाइव टेलीकास्ट देखते हुए
राष्ट्र गीत गुनगुनाते हुए,सलामी देते हुए कहना
"मैं भी सैनिक बनना चाहता हूँ"
भविष्य के बदलाव का शुभ संकेत हैं
देश के लिए सम्मान पनपना
भावनाओं का जन्मना...,
कोई फर्क नहीं पड़ता कि
खुरदरी दरी या आरामदायक बिस्तर है
आँखों के सपने कंम्प्यूटराइज़्ड ही सही
पर अपने देश का तिरंगा लिए
हँसते-मुस्कुराते 2022 के बच्चे
उम्मीद की संजीवनी बूटी से लगते हैं
जो विश्वास दिलाते है कि  
एक दिन अवश्य करेंगे
व्याधि मुक्त राष्ट्र का निर्माण।

#श्वेता सिन्हा
२५ जनवरी २०२२

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