आज़ाद देश के,
जिम्मेदार बुद्धिजीवी
बहुत शर्मिंदा हैं,
देश की बदहाल हवा में,
दिन-ब-दिन विषाक्त होता
पानी पीकर भी
अफ़सोस ज़िंदा हैं।
आज़ादी की वर्षगांठ पर
विश्लेषण का भारी पिटारा लादे
गली-चौराहों,
नुक्कड़ की पान-दुकानों पर,
अरे नहीं भाई! अब ट्रेड बदल गया है न....
कुछ पढ़े-लिखे बुद्धिजीवी देशभक्त
अलग-अलग खेमों के प्रचारक
देश की चिंता में दुबलाते
क़लम की नोंक से
कब्र खोद-खोदकर
सोशल मीडिया पर
आज़ाद भारत के दुखित,पीड़ित,दलित
विवादित,संक्रमित विषयों का
मुर्दा इतिहास,जीवित मुर्दों के
वर्तमान और भविष्य की स्थिति का
मार्मिक अवलोकन करते
समाज,देश और स्त्रियों की दशा,
दुर्दशा पर चिंतित
दार्शनिक उद्गार व्यक्त करके
भयावह,दयनीय शब्दों के रेखाचित्र की
प्रदर्शनी लगाकर वाहवाही के
रेज़गारी बटोरकर आहृलादित होते
सोशल मंच पर उपस्थिति के
दायित्वों का टोकरा खाली करते हैं।
आज़ादी से हासिल
शून्य उपलब्धियों का डेटा
अपडेट करते
आज़ाद देश में रहने वाले भयभीत
असहिष्णुओं का मनोवैज्ञानिक
पोस्टमार्टम करते,
सच-झूठ के धागे और उलझाकर
तर्क-कुतर्क का ज्ञान बघारते
ख़ुद ही न्यायाधीश बने
किसी को भी मुज़रिम ठहरा
सही-गलत का फैसला
गर्व से सुनाते है
देश के नाम का शृंगार कर
देश की माटी में विहार कर
इसी से उपजा अन्न खाकर
चैन की बाँसुरी बजाकर
देश के बहादुर रक्षकों की
छत्रछाया में सुरक्षित,
देश की आज़ादी की हर वर्षगांठ पर
देश को कोसने वाले
छाती पीटकर रोने वाले
हमारे देश के
सोशल बुद्धिजीवी ही तो
सच्चे देशभक्त हैं।
#श्वेता सिन्हा