Friday, 2 February 2018

कोमल मन हूँ मैं


ज्योति मैं पूजा की पावन
गीतिका की छंद हूँ मैं
धरा गगन के मध्य फैली
एक क्षितिज निर्द्वन्द्व हूँ मैं

नभ के तारों में नहीं हूँ
ना चाँदनी का तन हूँ मैं
कमलनयन प्रियतम की मेरे
नयनों का उन्मन हूँ मैं

न ही तम में न मैं घन में
न मिलूँ मौसम के रंग में
पाषाण मोम बन के बहे
वो मीत कोमल मन हूँ मैं

जो छू ना पाये हिय तेरा
वो गीत बनकर क्या करूँ
चिर सुहागन प्रीति पथ में
अमिट रहे वो क्षण हूँ मैं

     #श्वेता🍁

Tuesday, 30 January 2018

इंद्रधनुष



मौन की चादर डाले
नीले आसमान पर
छींटदार श्वेत बादलों की 
छाँव में
बाँह पसारे हवाओं के संग
बहते परिंदे मानो
वक़्त के समुन्दर में 
निर्विकार उमड़ते ज्वार
से किनारे पर बिखरे 
मोतियों को सहलाते हैं
अक्सर झरोखे के पीछे से
मंत्रमुग्ध नभ में विलीन
स्वप्निल आँखों के कैनवास पर
अनजाने स्पर्श से
जीवित होने लगती हैं 
निर्जीव पड़ी तस्वीरें
लंबे देवदार के वृक्षों की कतारों के
ढलान पर लाल बजरी की पगडंडियों से
झील तक पहुँचते रास्ते पर
जंगली पीले फूलों को चूमते
रस पीते भँवरे गुनगुनाने लगते हैं
चौकोर काले चट्टान पर बैठी मैं
घुटनों पर ठोढ़ी टिकाये
हथेलियों से गालों को थामे
हवाएँ रह-रह कर 
बादामी ज़ुल्फ़ों से खेलती है
तब धड़कनों को चुपचाप सुनती
मदहोश ख़्याल में गुम
दूर तक फैले गहरे हरे पानी के ग़लीचे पर
देवदार के पत्तों से छनकर आती
धुंधली सूरज की मख़मली किरणें
जो झीेल के आईने में गिरते ही
बदल जाती है 
इंद्रधनुषी रंगों में
और पानी से खेलती हथेलियों पर
पसर जाती है बाँधनी चुनर सी
उन चटकीले रंगों को 
मल कर मन के बेजान पन्नों पर
उकेरती हूँ 
शब्दों की तूलिका से 
कविताओं के इंद्रधनुष।


      #श्वेता सिन्हा

Sunday, 28 January 2018

तितली


                            मुद्दतों बाद 
आज फिर से
भूली-बिसरी 
राहों से गुज़रते 
हरे मैदान के 
उपेक्षित कोने में  
गुलाब के सूखे झाड़
ने थाम लिया दुपट्टा मेरा
टूटकर बिखरी पंखुड़ियाँ 
हौले से
छू गयी पाँव की उंगलियां
सुर्ख रंग
पोरों से होकर
ठिठुरती धूप में फैल गयी
काँपती धड़कनों में,
कुनकुनी किरणें 
अथक प्रयास करने लगी
जमी वादियों की बर्फ़ पिघलाने की
एक गुनगुना एहसास 
बंद मुट्ठियों तक आ पहुँचा
पसीजी हथेलियों की 
आडी़ तिरछी लकीरों से
अनगिनत रंग बिरंगे
सोये ख़्वाब फिर से
ख़्वाहिशों के आँगन में
तितली बन उड़ने लगे।
               -----श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...