Saturday, 22 April 2017

धरती बचाओ

जनम मरण का खेल तमाशा
सुख दुख विश्वास अविश्वास
प्रेम क्रोध सबका संगम है
कर्मभूमि सबके जीवन की
धरती माँ का यही अँचल है
नहीं किसी से करती  भेद
सबको देती एकसमान भेंट
रंग बिरंगे मौसम कण कण में
पल पल करवट लेते क्षण में
कहीं हरीतिमा कही रेतीला
कही पर्वत पर बर्फ का टीला
ऊँची घाटी विस्तृत बगान
सब सुंदर पृथ्वी की जान
कल कल बहती जलधारा है
विशाल समन्दर बड़ा खारा है
बर्फ से ढका हुआ ध्रुव सारा है
कहीं उगलता आग का गुब्बारा है
चहकते पंछी के कलरव नभ में
असंख्य विचित्र जीव है जग में
अद्वितीय अनुपम रचना पर मोहित
प्रभु के हृदय पर धरा सुशोभित

पर मौन धरा का रूदन अब
तुमको ही समझना होगा
जितना दुलार मिला है धरती से
उतना ही तुम्हें वापस देना होगा
हे मानव तुम्हें ही अपने हाथों से
धरा के विनाश को रोकना होगा
वृक्षों को नष्ट कर कंकरीट न बोओ
वरना भविष्य में तुमको रोना होगा
अमृत है जल जीवन के लिए
न बहाया करो कभी व्यर्थ में
फिर बूँद बूँद को तरसना होगा
सबसे पहला घर धरा है तुम्हारा
ये विनष्ट हुआ तो जीवन क्या होगा
अपने घर की हर संपदा को तुमको
अपने प्रयास से सहेजना होगा
सुनो विनाश के बढ़ते कदमों की चाप
जो निगल रहा है सबकुछ चुपचाप
अब भी वक्त है सचेत हो जाओ
धरा की तुम छतरी बन जाओ

धरोहर समेटो ।धरती बचाओ।जीवन बचाओ।

       #श्वेता🍁

           

Thursday, 20 April 2017

तुम साथ हो

मौन हृदय के स्पंदन के
सुगंध में खोये
जग के कोलाहल से परे
एक अनछुआ सा एहसास
सम्मोहित करता है
एक अनजानी कशिश
खींचती है अपनी ओर
एकान्त को भर देती है
महकती रोशनी से
और मैं विलीन हो जाती हूँ
शून्य में कहीं जहाँ
भावनाओं मे बहते
संवेदनाओं की मीठी सी
निर्झरी मन को तृप्त करने का
असफल प्रयास करती है,
उस प्रवाह में डूबती उतरती
भूलकर सबकुछ
तुम्हें महसूस करती हूँ
तब तुम पास हो कि दूर
फर्क नहीं पड़ता कोई
बस तुम साथ होते हो,
धड़कते दिल की तरह,
उस श्वास की तरह
जो अदृश्य होकर भी
जीवन का एहसास है।

            #श्वेता🍁

खुशबू आपकी

सुर्ख गुलाब की खुशबुएँ उतरने लगी
रूठी ज़िदगी फिर से अब सँवरने लगी

बाग में तितलियाँ फूलों को चूमे है जब
लेकर अँगड़ाईयाँ हर कली बिखरने लगी

एक टुकड़ा धूप जबसे आँगन मेरे उतरा
पलकों की नमी होंठों पे सिहरने लगी

दूर जाकर भी इन आँखों मे मुस्कुराते हो
दो पल के साथ को हसरतें तड़पने लगी

तुम मेरी ज़िदगी का हंसी किस्सा बन गये
एहसास को छूकर दीवानगी गुजरने लगी

       #श्वेता🍁


Wednesday, 19 April 2017

राधा की पीड़ा

न भाये कछु राग रंग,
न जिया लगे कछु काज सखि।

मोती टपके अँचरा भीगे,
बिन मौसम बरसात सखि।

सूना पनघट जमना चुप सी,
गोकुल की गली उदास सखि।

दिवस जलावै साँझ रूलावै,
बड़ी मुश्किल में कटे रात सखि।

बैरन निदियां भयी नयन से,
भरी भरी आये ये आँख सखि।

निर्मोही को संदेशा दे दो,
लगी दरश की प्यास सखि।

दिन दिन भर मैं बाट निहारूँ,
कब आयगे मोरे श्याम सखि।

   #श्वेता🍁


एक ख्याल

जेहन की पगडंडियों पर चलकर
ए ख्याल,मन के कोरो को छूता है।
बरसों से जमे हिमखंड
शब्दों की आँच में पिघलकर,
हृदय की सूखी नदी की जलधारा बन
किनारों पर फैलै बंजर धरा पर
बूँद बूँद बिखरकर नवप्राण से भर देती है,
फिर प्रस्फुटित होते है नन्हें नन्हें,
कोमल भाव में लिपटे पौधे,
और खिल जाते है नाजुक
डालियों पर महकते
मुस्कुराहटों के फूल,
सुवासित करते तन मन को।
ख्वाहिशों की तितलियाँ
जो उड़कर छेड़ती है मन के तारों को
और गीत के सुंदर बोल
भर देते है जीवन रागिनी
और फिर से जी उठती है,
प्रस्तर प्रतिमा की
स्पंदनविहीन धड़कनें।
एक ख्याल, जो बदल देता है
जीवन में खुशियों का मायना।

            #श्वेता🍁

Tuesday, 18 April 2017

पागल है दिल

पागल है दिल संग यादों के निकल पड़ता है,
चाँद का चेहरा देख लूँ नीदों में खलल पड़ता है।

बिखरी रहती थी खुशबुएँ कभी हसीन रास्तों पर,
उन वीरान राह में खंडहर सा कोई महल पड़ता है।

तेरे दूर होने से उदास हो जाती है धड़कन बहुत,
नाम तेरा सुनते ही दिल सीने में उछल पड़ता है।

तारों को मुट्ठियों में भरकर बैठ जाते है मुंडेरों पे,
चाँदनी की झील में तेरे नज़रों का कँवल पड़ता है।

याद तेरी जब तन्हाई में आगोश से लिपटती है,
तड़पकर दर्द दिल का आँखों से उबल पड़ता है।

            #श्वेता🍁

सोच के पाखी

अन्तर्मन के आसमान में
रंग बिरंगे पंख लगाकर
उड़ते फिरते सोच के पाखी
अनवरत अविराम निरंतर
मन में मन से बातें करते
मन के सूनेपन को भरते
शब्दों से परे सोच के पाखी

कभी नील गगन में उड़ जाते
सागर की लहरों में बलखाते
छूकर सूरज की किरणों को
बादल में रोज नहाकर कर आते
बारिश में भींगते सोच के पाती

चंदा के आँगन में उतरकर
सितारों की ओढ़नी डालकर
जुगनू को बनाकर दीपक
परियों के देश का रस्ता पूछे
ख्वाब में खोये सोच के पाखी

नीम से कड़वी नश्तर सी चुभती
मीठी तीखी शमशीर सी पड़ती
कभी टूटे टुकडों से विकल होते
खुद ही समेट कर सजल होते
जीना सिखाये सोच के पाखी

जाने अनजाने चेहरों को गुनके
जाल रेशमी बातों का बुनके
तप्त हृदय के सूने तट पर मौन
सतरंगी तितली बन अधरों को छू
कुछ बूँदे रस अमृत की दे जाते
खुशबू से भर जाते सोच के पाखी

     #श्वेता🍁

जीवन एक खिलौना है।

माटी के कठपुतले हम सब,जीवन एक खिलौना है।

हँसकर जी ललचाए, कभी यह काँटो भरा बिछौना है।

सोच के डोर के उलझे धागे सोचों का ही सब रोना है।

सुख दुख के पहिये पे घूमे,कभी माटी तो कभी सोना है।

मिल जाये इंद्रासन फिर भी,असंतोष में पलके भिगोना है।

मानुष फितरत कभी न बदले,बस खोने का ही रोना है।

सिर पटको या तन को धुन लो,होगा वही जो होना है।

चलता साँसों का ताना बाना, तब तक ये खेल तो होना है।

             #श्वेता🍁

Monday, 17 April 2017

थोड़ा.सा पा लूँ तुमको

अपनी भीगी पलकों पे सजा लूँ तुमको
दर्द कम हो गर थोड़ा सा पा लूँ तुमको

तू चाँद मखमली तन्हा अंधेरी रातों का
चाँदनी सा ओढ़ खुद पे बिछा लूँ तुमको

खो जाते हो अक्सर जम़ाने की भीड़ में
आ आँखों में काजल सा छुपा लूँ तुमको

मेरी नज़्म के हर लफ्ज़ तेरी दास्तां कहे
गीत बन जाओ होठों से लगा लूँ तुमको

महक गुलाब की लिये जहन में रहते हो
टूट कर बाँह में बिखरों तो संभालूँ तुमको

        #श्वेता🍁

ज़िदगी की चाय

ख्वाहिशों में लिपटी
खूबसूरत भोर में,
उम्मीद के पतीले में
सपनों का पानी भरा
चंद चुटकी पत्तियाँ
कर्मों की डालकर
मेहनत के शक्कर
सच्चाई की दूध और
 रिश्तों के मसाले मिला
प्रेम के ढक्कन लगाकर
ज़िदगी के चूल्हें पर रखी है,
वक्त की धीमी आँच पर
पककर जब तैयार हो जाए
फिर चखकर बताना
कैसी लगी अनोखे स्वाद
से भरी हसरतों की चाय

                                 #श्वेता🍁


Sunday, 16 April 2017

तारे

भोर की किरणों में बिखर गये तारे
जाने किस झील में उतर गये तारे

रातभर मेरे दामन में चमकते रहे
आँख लगी कहीं निकल गये तारे

रात पहाड़ों पर जो फूल खिले थे
उन्हें ढूँढने वादियों में उतर गये तारे

तन्हाईयों में बातें करते रहे बेआवाज़
सहमकर सुबह शोर से गुज़र गये तारे

चमक रहे है फूलों पर शबनमी कतरे
खुशबू बनकर गुलों में ठहर गये तारे

           #श्वेता🍁

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...