Thursday, 15 February 2024

क्या फर्क पड़ जायेगा



क्या फर्क पड़ जायेगा

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हर बार यही सोचती हूँ

क्यों सोचूँ मैं विशेष झुण्ड की तरह 

निपुणता से तटस्थ रहूँगी...

परंतु घटनाक्रमों एवं विचारों के

संघर्षों से उत्पन्न ताप

सारे संकल्पों को भस्म करने

लगती है ,

तब एक-एक कर

सहमतियों-असहमतियों के फुदने 

भावनाओं की महीन सुईयों से

अपने विचारों के ऊपर

सजाकर सिलने लगती हूँ

फिर, शुद्ध स्वार्थ में गोते लगाते

बहरूपियों के 

नैतिक मूल्यों के अवमूल्यन से

उकताकर सोचती हूँ

बाहरी कोलाहल में 

सम्मिलित होने का स्वांग क्यों भरूँ?

क्या फर्क पड़ जायेगा

अपने अंतर्मन की शांति की तलाश में

मेरी तटस्थता से 

मेरी संवेदना को

अगर मृत मान लिया जाएगा ?

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श्वेता सिन्हा


Monday, 12 February 2024

मन


मन
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हल्की,गहरी,
संकरी,चौड़ी
खुरदरी,नुकीली,
कंटीली
अनगिनत
आकार-प्रकार की
वर्जनाओं के नाम पर
खींची सीमा रेखाओं के
इस पार से लोलुप दृष्टि से
छुप-छुप कर ताकता
उसपार
मर्यादा के भारी परदों को
बार-बार सरकाता,लगाता,
अपने तन की वर्जनाओं के
छिछले बाड़ में क़ैद
छटपटाता
लाँघकर देहरी
सर्वस्व पा लेने के
आभास में ख़ुश होता
उन्मुक्त मन
वर्जित प्रदेश के
विस्तृत आकाश में
उड़ता रहता है स्वच्छंद।
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श्वेता


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...