नज़्म-----चेहरे पे कितने भी चेहरे लगाइए,दुनिया जो जानती वो हमसे छुपाइए।माना; अब आपके दिल में नहीं हैं हम,शिद्दत से अजनबीयत का रिस्ता निभाइए।हम ख़ुद ही मुँह फेर लेंगे आहट पे आपकी,आँखें चुराने की आप न ज़हमत उठाइए ।जी-हज़ूरी ख़्वाहिशों की करते नहीं अब हम,जा ही रहे हैं, साथ सारे एहसान ले जाइए।दर्द है भी या नहीं कोई एहसास न रहा,बना दिया है बुत, सज्दे में सर तो झुकाइए।दुआओं के सिवा,इख़्तियार में कुछ बचा नहीं,अब शौक से हिज्र की रस्में निभाइए।
#श्वेता