Saturday, 20 June 2020

सैनिक मेरे देश के



सूर्य की किरणें
निचोड़ने पर
उसके अर्क से
गढ़ी आकृतियाँ, 
सैनिक मेरे देश के।

चाँदनी की स्वप्निल
डोरियों से 
उकेरे रेखाचित्र
स्निग्ध,धवल 
बुनावट,यथार्थ की
मोहक कलाकृतियाँ,
सैनिक मेरे देश के।

पर्वतों को
गलाकर बाजुओं में
धारते, वज्र के
परकोटे, 
विषबुझी टहनियाँ,
सैनिक मेरे देश के।

लक्ष्मण रेखा,
सीमाओं के
जीवित ज्वालामुखी,
शांत राख में दबी
चिनगारियाँ,
सैनिक मेरे देश के।

हुंकार मृत्यु की
जयघोष विजय,
शत्रुओं की हर
आहट पर
तुमुलनाद करती
दुदुंभियाँ,
सैनिक मेरे देश के।

माँ-बाबू के
कुम्हलाते नेत्रों की
चमकती रोशनी,
सिंदूरी साँझ में
प्रतीक्षित विरहणियों की
फालसाई स्मृतियाँ,
सैनिक मेरे देश के।

सभ्यताओं के
बर्बर छत्तों में
जीवन पराग 
हँस-हँसकर त्याजते,
मातृभूमि के लाड़ले सपूत,
मानवता की बाड़ की
दुर्भेद्य कमाचियाँ,
सैनिक मेरे देश के।

©श्वेता सिन्हा
२० जून २०२०

Wednesday, 17 June 2020

नियति


तुम्हारी 
प्राथमिकताओं की
सूची में
सर्वोच्च स्थान
पाने की कामना
सदा रही,
किंतु तुम्हारी
विकल्पों की सूची में भी
स्वयं को सबसे अंतिम पाया।

तुम्हारे लिये
विशेष मैं हो नहीं सकती
परंतु अपने अंश का
शेष भी सदैव
तुम्हारा मुँह जोहते 
उपेक्षित पाया।

एकटुक,
अपलक निहारो कभी,
तुम्हारी आँखोंं में
स्वयं को पिघलाने का स्वप्न
मर्यादाओं की
लक्ष्मणरेखा का यथार्थ
लाँघकर भी
तुम्हारी दृष्टि में
व्यर्थ ही रहा।

बहुत चाहा
तुम्हारी तृप्ति का
एक बूँद हो सकूँ
किंतु तुम्हारे अहं की 'धा' में
भाप बनी
अपने लिए
तुम्हारे मनोभावों
 की सत्यता
जानकर भी
 तुम्हारे ही
 आस-पास
 भटकना
 और मिट जाना
 नियति है मेरी।

©श्वेता सिन्हा

Sunday, 14 June 2020

शोक गीत


चेतना के बंद कपाट के पार,
मनमुताबिक न मिल पाने की
तीव्रतम यंत्रणा से क्षत-विक्षिप्त,
भरभरायी उम्मीद घूरती है।

अप्राप्य इच्छाओं के कोलाज
आँसुओं में भीगकर गलते है,
जीवन की धार भोथड़ होकर,
संघर्ष का गला रेतती है।

प्रतिकूल जीवन के ढर्रे से विद्रोह
संवाद का कंठ अवरुद्ध करके,
भावनाओं की सुनामी का ज्वार
अनुभूतियों का सौंदर्य लीलती है।

मन के अंतर्द्वंद्व का विष पीकर
मुस्कान में घोंटकर श्वास वेदना,
टूटी देह, फूटे प्रारब्ध से लड़कर 
जीवन का मंत्र बुदबुदाती पीड़ा।

विजय और उम्मीद पताका लिए
स्व,स्वजन,स्वदेश के लिए जूझते, 
साहसी,वीर योद्धाओं का अपमान है,
कायरों के आत्मघात पर शोक गीत।

©श्वेता सिन्हा
१४ जून २०२०

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...