Sunday, 9 February 2020

पदचाप



चित्र:साभार सुबोध सर की वॉल से
-------
सरल अनुभूति के जटिल अर्थ,
भाव खदबदाहट, झुलसाते भाप।
जग के मायावी वीथियों में गूँजित
चीन्हे-अनचीन्हे असंख्य पदचाप।

तम की गहनता पर खिलखिलाते,
तप तारों का,भोर के लिए मंत्रजाप।
मूक परिवर्तन अविराम,क्षण-प्रतिक्षण, 
गतिमान काल का निस्पृह पदचाप

ज्ञान-अज्ञान,जड़-चेतन के गूढ़ प्रश्न,
ब्रह्मांड में स्पंदित नैसर्गिक आलाप।
निर्माण के संग विनाश का शाप,
जीवन लाती है मृत्यु की पदचाप।

सृष्टि के कण-कण की चित्रकारी,
धरा-प्रकृति , ब्रह्म जीव की छाप।
हे कवि!तुम प्रतीक हो उजास की,
लिखो निराशा में आशा की पदचाप।

#श्वेता सिन्हा
०९/०२/२०२०

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...