Tuesday, 21 February 2017

ब्लॉग की सालगिरह.... चाँद की किरणें

सालभर बीत गये कैसे...पता ही न चला।
हाँ आज ही के दिन १६फरवरी२००१७ को पहली बार ब्लॉग पर लिखना शुरु किये थे। कुछ पता नहीं था ब्लॉग के बारे में। आदरणीय पुरुषोत्तम जी की रचनाएँ पढ़ते हुये समझ आया कि साहित्य जगत के असली मोती तो ब्लॉग जगत में महासागर में छुपे हैं। हिम्मत जुटाकर  फिर अपने मोबाईल-फोन के माध्यम से ही एक एकाउंट बना लिये हम भी। शुरु में कुछ भी नहीं समझ आता था, कैसे सेटिंग्स करे,कैसे पोस्ट करे, बहुत परेशान होते थे। पहली बार ३ मार्च २०१७ को यशोदा दी ने मेरी रचना लिंक की थी पाँच लिंकों पर। ज्यादा कुछ तो नहीं पता था पर इतना समझ आया कि किसी मंच ने मेरी लिखी रचना पसंद की है। सच बताये तो उस ख़ुशी को शब्दों में लिख पाना संभव नहीं।
फिर धीरे-धीरे समझने लगे, आप सभी के अमूल्य सहयोग से।" यशोदा दी" का विशेष धन्यवाद मेरे यहाँ तक के सफ़र में रहा है, उन्होंने मेरे नन्हें पंखों को उड़ान दी है। उनका स्नेह कभी नहीं भुला पायेंगे।
ब्लॉग में आने के पहले हम गूगल के अलावा कभी कहीं भी किसी भी तरह से एक्टिव नहीं थे। ब्लॉग ने एक नयी पहचान दी, मेरा नाम जो खो गया था, अब मेरा था। एक बेटी,एक बहन एक बहू,एक भाभी ,एक पत्नी, एक माँ और ऐसे अनगिनत रिश्तों में खो गयी "श्वेता" के जीवित होने का एहसास बहुत सुखद है।
आप सभी का हृदयतल से अति आभार प्रकट करते है। उम्मीद है आगे के सफर में आप सब अतुल्य स्नेह और साथ मिलता रहेगा।

मेरी पहली रचना जो यशोदा दी ने लिंक की थी पाँच लिंक पर आपसब के साथ आज शेयर करते हुये बहुत ख़ुशी हो रही।

दिनभर चुन-चुन कर रखी थी
हल्की-हल्की गरमाहटें
धूप के कतरनों से तोड़-तोड़कर
शाम होते ही हल्की हो गयी
हौलै से उड़कर बादलों के संग
हवाओं मे अठखेलियाँ करती
जा पहुँची आकाशगंगा
की अनन्त गहराई में
निहारती तलाशती
आसमां के दामन में सितारों
के बूटे को सहलाती
चाँद के आँगन जा उतरी
एक याद मीठी-सी
चाँदनी की डोर थामे
पीपल के पत्तों पर कुछ देर
थम गयी अलसायी-सी
पिघलती नमी यादों की
जुगनुओं के संग
झरोखों से छनकती पलकों में
आकर समाँ गयी
छेड़ने फिर से ख़्वाबों को
कभी रातभर बतियाने को
जाने ये याद़े किस देश से आती
अपनी नहीं पर एक पल को
अकेला नही रहने देती
कस्तूरी मन की बहकाये रहती
मन बाबरा सब जाने सब समझे
पर खींचा जाये सम्मोहित सा
डूबने को आतुर अपनी रंगी संसार मे


#श्वेता🍁


धागा चाँदनी का

तोड़कर धागा चाँदनी के
टूटे ख्वाबों को सी लूँ

भरकर चाँद का एक कोना
दर्द सारे आँखों से पी लूँ

सर्द हवाएँ जो तुमको छू आयी
आगोश भर एहसास जी लूँ

बिखरे पलकों से मोतियों की लड़ी
स्याह दामन में सितारे पिरो लूँ

जुगनू के परों पर बाँध ख्वाहिशें
रात का आँचल रंगी कर दूँ
 
    #श्वेता🍁


ढूँढ़ने चले हैं

लिखकर तहरीरें  खत में तेरा पता ढूँढ़ने चले है
कभी तो  तुमसे जा मिले वो रास्ता ढ़ूँढ़ने चले है

सफर का सिलसिला बिन मंजिलों का हो गया
तुम नही हो ज़िदगी जिसमें  वास्ता ढूँढ़ने चले है

चीखती है खामोशियाँ तन्हाई में तेरी सदाएँ है
जाने कब खत्म हो दर्द की  इंतिहा ढूँढ़ने चले है

बेरूखी की साज़ पर प्रेम धुन बज नही सकती
चोट खाकर इश्क का फलसफा ढूँढ़ने चले है

  #श्वेता🍁

पलाश

पिघल रही सर्दियाँ
झरते वृक्षों के पात
निर्जन वन के दामन में
खिलने लगे पलाश

सुंदरता बिखरी चहुँओर
चटख रंग उतरे घर आँगन
उमंग की चली फागुनी बयार
लदे वृक्ष भरे फूल पलाश


सिंदूरी रंग साँझ के रंग
मल गये नरम कपोल
तन ओढ़े रेशमी चुनर
केसरी फूल पलाश

आमों की डाली पे कूके
कोयलिया विरहा राग
अकुलाहट भरे पीर उठे
मन में बिखरने लगे पलाश

गंधहीन पुष्पों की बहारें
मृत अनुभूति के वन में
दावानल सा भ्रमित होता
मन बन गया फूल पलाश


       #श्वेता🍁

Monday, 20 February 2017

वजह

उदास रात के दामन मेंं
बिसूरती चाँदनी 
खामोश मंजर पसरा है
मातमी सन्नाटा 
ठंडी छत पर सर्द किरणें
बर्फीला एहसास
कुहासे जैसे घने बादलों का
 काफ़िला कोई
नम नीरवता पाँव पसारती
पल-पल गहराती
पत्तियों की ओट में मद्धिम
फीका सा चाँद
अपने अस्तित्व के लिए लड़ता
चुपचाप अटल सा
कंपकपाते बर्फ़ के मानिंंद
सूनी हथेलियों को
अपने तन के इर्द-गिर्द लपेटे
ख़ुद से बेखबर
मौसम की बेरूख़ी को सहते
यादों को सीने से लगाये
अपनी ख़ता पूछती है नम पलकोंं से
बेवज़ह जो मिली 
उस सज़ा की वजह पूछती है 
एक रूह तड़पती-सी
यादोंं को मिटाने का रास्ता पूछती है।


      #श्वेता


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...