चित्र : मनस्वी
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प्रेम में डूबी स्त्री----
प्रसिद्ध प्रेमकाव्यों की
बेसुध नायिकाओं सी
किसी तिलिस्मी झरने में
रात-रातभर नहाती हैं
पेड़ की फुनगियों पर टँकें
इंद्रधनुष की खुशबू
समेटकर अंजुरी से
मलकर देह पर
मत्स्यगंधा सी इतराती हैं।
प्रसिद्ध प्रेमकाव्यों की
बेसुध नायिकाओं सी
किसी तिलिस्मी झरने में
रात-रातभर नहाती हैं
पेड़ की फुनगियों पर टँकें
इंद्रधनुष की खुशबू
समेटकर अंजुरी से
मलकर देह पर
मत्स्यगंधा सी इतराती हैं।
प्रेम में डूबी स्त्री---
तितलियों की पीठ पर
उड़ती हुई
छुप जाना चाहती है अंतरिक्ष में
शाम ढले
तोड़कर चाँद से
ढेर सारी कतरनें
प्रियतम के सपनों की ज़ेब में
भरना चाहती है,
कभी किसी घुटनभरे अंधेरे में
जो बिखरकर
उजाला कर दे।
प्रेम में डूबी स्त्री ----
स्मृतियों की पाती
बाँचती हुई
शब्दों की छुअन से
विह्वल होकर
धुँआ-धुँआ आँखों से
बहाती हैं
गंगाजल-सी
पवित्र बूँदें
जिससे चला करती हैं
उसकी बंजर साँसें।
प्रेम में डूबी स्त्री-
दुधमुंहे बच्चे सी
मासूम,निर्मल,
भावुकता से छलछलाती हुई
बेवजह हर बात पर हँसती,
विकल हो ज़ार-ज़ार रोती,
अकारण ही मुस्कुराती हैं
सही-गलत के
तर्कों में उलझे बिना
प्रेम की गंध से मतायी
फतिंगा बन
आग को चूमकर
राख सी झर जाती हैं।
प्रेम में डूबी स्त्री---
मछली जैसी होती हैं
स्वयं में खोयी
मचलती रहती हैं
प्रेम की धाराओं में
बेआवाज़ गुनगुनाती हुई
राह भूलकर
मछुआरे की नाव पर
सवार होकर
एक दिन हो जाती है
टूटता सितारा।
प्रेम में डूबी स्त्री---
अनगिनत रूप धारण करती है
प्रेम के...
बाँधकर रखती है
अपने दुपट्टे की छोर से
भावनाओं की महीन चाभियाँ
और
बचाए रखती है
सृष्टि में प्रेम के बीज...।
अपने दुपट्टे की छोर से
भावनाओं की महीन चाभियाँ
और
बचाए रखती है
सृष्टि में प्रेम के बीज...।
#श्वेता सिन्हा
११ जुलाई २०२१
११ जुलाई २०२१