Sunday, 11 July 2021

प्रेम में डूबी स्त्री


चित्र : मनस्वी
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 प्रेम में डूबी स्त्री----
 प्रसिद्ध प्रेमकाव्यों की
बेसुध नायिकाओं सी 
किसी तिलिस्मी झरने में
रात-रातभर नहाती हैं
पेड़ की फुनगियों पर टँकें
इंद्रधनुष की खुशबू 
समेटकर अंजुरी से
मलकर देह पर
मत्स्यगंधा सी इतराती हैं।

प्रेम में डूबी स्त्री---
तितलियों की पीठ पर 
उड़ती हुई 
छुप जाना चाहती है अंतरिक्ष में
शाम ढले 
तोड़कर चाँद से
ढेर सारी कतरनें
प्रियतम के सपनों की ज़ेब में
भरना चाहती है,
कभी किसी घुटनभरे अंधेरे में
जो बिखरकर 
उजाला कर दे।
 
प्रेम में डूबी स्त्री ----
 स्मृतियों की पाती 
 बाँचती हुई
शब्दों की छुअन से
विह्वल होकर
धुँआ-धुँआ आँखों से
बहाती हैं
गंगाजल-सी 
पवित्र बूँदें
जिससे चला करती हैं
उसकी बंजर साँसें। 

प्रेम में डूबी स्त्री-
दुधमुंहे बच्चे सी
मासूम,निर्मल,
भावुकता से छलछलाती हुई
बेवजह हर बात पर हँसती,
विकल हो ज़ार-ज़ार रोती,
अकारण ही मुस्कुराती हैं
सही-गलत के
तर्कों में उलझे बिना
 प्रेम की गंध से मतायी
 फतिंगा बन 
आग को चूमकर
राख सी झर जाती हैं।

प्रेम में डूबी स्त्री---
मछली जैसी होती हैं
स्वयं में खोयी
मचलती रहती हैं
प्रेम की धाराओं में
बेआवाज़ गुनगुनाती हुई 
राह भूलकर
मछुआरे की नाव पर 
सवार होकर
एक दिन हो जाती है
टूटता सितारा।

प्रेम में डूबी स्त्री---
अनगिनत रूप धारण करती है
प्रेम के...
बाँधकर रखती है
अपने दुपट्टे की छोर से
भावनाओं की महीन चाभियाँ
और
बचाए रखती है
सृष्टि में प्रेम के बीज...।


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#श्वेता सिन्हा
११ जुलाई २०२१


25 comments:

  1. बहुत सुंदर व्याख्या
    ऐसा ही होता है..
    प्रेम में डूबी स्त्री---
    मछली जैसी होती हैं
    स्वयं में खोयी
    मचलती रहती हैं
    सादर..

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  2. प्रेम में डूबी स्त्री---
    अनगिनत रूप धारण करती है
    प्रेम के...
    बाँधकर रखती है
    अपने दुपट्टे की छोर से
    भावनाओं की महीन चाभियाँ
    और
    बचाए रखती है
    सृष्टि में प्रेम के बीज...। बेहद सुंदर भावपूर्ण रचना श्वेता जी।

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  3. कल रथ यात्रा के दिन " पाँच लिंकों का आनंद " ब्लॉग का जन्मदिन है । आपसे अनुरोध है कि इस उत्सव में शामिल हो कृतार्थ करें ।

    आपकी लिखी कोई रचना सोमवार 12 जुलाई 2021 को साझा की गई है ,
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।

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  4. प्रेम में डूबी स्त्री---/अनगिनत रूप धारण करती है
    प्रेम के.../बाँधकर रखती है//अपने दुपट्टे की छोर से
    भावनाओं की महीन चाभियाँ/और /बचाए रखती है
    सृष्टि में प्रेम के बीज...।//
    वाह ! प्रेम में डूबी स्त्री को देखने के जो आत्मा की सूक्ष्म आँखें चाहिए वही कवि के पास होती हैं | सृष्टि में प्रेम के बीज की सबसे सुरक्षित आश्रयस्थली , नारी की अविशुद्ध निर्मल आत्मा है जहाँ ये जीवित है , पुष्पित है , पल्लवित है | इस रचना के लिए निशब्द हूँ प्रिय श्वेता |

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  5. जीवंत, प्रकृतिरूप और उमंग संग लेकर चलती प्रेम में डूबी स्त्री। सुन्दर पंक्तियाँ श्वेताजी।

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  6. प्रेम में डूबी स्त्री---
    अनगिनत रूप धारण करती है
    प्रेम के...
    बाँधकर रखती है
    अपने दुपट्टे की छोर से
    भावनाओं की महीन चाभियाँ
    और
    बचाए रखती है
    सृष्टि में प्रेम के बीज
    बहुत सुन्दर रचना !

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  7. बेहद खूबसूरती से लिखा है आपने एक सच। शानदार कविता।

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  8. पहले तारीफ प्रिय मनस्वी की -
    गज़ब का चित्र बनाया है। इतनी कम उम्र में रंग संयोजन एवं रेखाओं की स्पष्टता कमाल है। उसे इस कला में प्रोत्साहित कीजिए।
    अब आप -
    प्रिय श्वेता,
    प्रेम में डूबी स्त्री.... स्त्री कब प्रेम में डूबी नहीं रहती? ना जाने कितनी ही बार छली जाने पर भी उसके प्रेम का सागर सूखता नहीं....छलकता ही रहता है। हर रिश्ते के लिए उसके आँचल की छाँव सुकून बनती रहती है और वह स्वयं धूप में तपते वृक्ष की तरह सृष्टि के लिए प्रेम के बीजों का भार वहन करती रहती है।
    एक अनुपम रचना के सृजन हेतु बहुत बहुत बधाई।

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  9. अनुपम भाव से सजी रचना।

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  10. बहुत ही मनोहर चित्र बनाया है प्रिय मनस्वी ने...
    और साथ में आपकी रचना हमेशा की तरह बहुत ही लाजवाब।
    प्रेम में डूबी स्त्री की सटीक व्याख्या की है आपने
    प्रेम में डूबी स्त्री---
    अनगिनत रूप धारण करती है
    प्रेम के...
    बाँधकर रखती है
    अपने दुपट्टे की छोर से
    भावनाओं की महीन चाभियाँ
    और
    बचाए रखती है
    सृष्टि में प्रेम के बीज...।
    इसीलिए तो इतनी नफरतें इतने शोषण और इतने छद्मवेशी धोखों के बावजूद भी नहीं खत्म हुआ हैं प्रेम का अस्तित्व इस सृष्टि से...।

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  11. बहुत ही मनोरम भावाङ्कन किया है स्त्री की मग्न मनोदशा का जब वह प्रेम में विभोर किसी सुन्दर स्वप्न सी अलभ्य हो जाती है.सुन्दरता पर जैसे झीना आवरण डाल रहस्यों से परिपूर्ण बना दिया हो .

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  12. प्रेम में डूबी स्त्री---
    अनगिनत रूप धारण करती है
    प्रेम के...
    बाँधकर रखती है
    अपने दुपट्टे की छोर से
    भावनाओं की महीन चाभियाँ
    और
    बचाए रखती है
    सृष्टि में प्रेम के बीज...।
    वाह! अत्यंत मनोहारी चित्रण!

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  13. वाह!! श्वेता अद्भुत है आपकी संवेदनात्मक विचार शक्ति ,और उपमाएं तो गज़ब की है आपकी इतनी अभिनव व्यंजनाओं ने कृति को अविस्मरणीय ,अमर बना दिया।
    सबसे अद्भुत कि प्रेम के स्वरूप पर रहस्य का आवरण भी हैं, प्रेम में डूबी,मीरा, द्रोपदी राधा,रेशमा,लैला पन्ना धाय, और सभी लौकिक अलौकिक प्रेम में डूबी आम स्त्री ।
    आसाराम सृजन।

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  14. वाह! चित्र और कविता का इतना सुंदर और मनोहारी मणि-कांचन संयोग मानों इड़ा और श्रद्धा एक साथ उतर आयी हों पन्ने पर! मनस्वी की कूची पर कुलांचे भरती कवयित्री श्वेता की शब्द चित्रकारी .... प्रेम में डूबी स्त्री! सृष्टि के सृजन और उसके अस्तित्व में बने रहने का मूल। प्रेम की कोख से ही ममता और करुणा की धारा फूटती है जिसका सूत्रधार है नारी और उसी प्रेम की शक्ति से शिव बनते हैं। उस धारा के सूखने का अर्थ है- शिव का शव हो जाना। सच में-
    प्रेम में डूबी स्त्री---
    अनगिनत रूप धारण करती है
    प्रेम के...
    बाँधकर रखती है
    अपने दुपट्टे की छोर से
    भावनाओं की महीन चाभियाँ
    और
    बचाए रखती है
    सृष्टि में प्रेम के बीज...।
    बधाई और आभार इतनी सुंदर और सार्थक रचना का!!!

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  15. प्रेम में डूबी स्त्री ----
    स्मृतियों की पाती
    बाँचती हुई
    शब्दों की छुअन से
    विह्वल होकर
    धुँआ-धुँआ आँखों से
    बहाती हैं
    गंगाजल-सी
    पवित्र बूँदें
    जिससे चला करती हैं
    उसकी बंजर साँसें।..बहुत सुंदर भाव श्वेता जी,बहुत शुभकामनाएं।

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  16. प्रेम में डूबी स्त्री के बारे में कल्पना मेरी सोच से परे है , ये तुम ही लिख सकती हो । मैं तो तुम्हारे दिए बिम्ब , उपमेय और उपमानों को आत्मसात करती तुम्हारे शब्दों के साथ बस बह भर रही हूँ ,प्रेम को समझना या महसूस करना हर एक के बस की बात भी नहीं है ।
    मुझे तो तिलिस्म झरना दिख रहा जिसमें रात भर नहा कर मत्स्यगंधा की तरह इतराती फिरेगी या फिर चाँद की कतरने दिख रहीं हैं जिन्हें भर दिया है उसने प्रेमी की जेब में ।
    पवित्र गंगाजल बहाती या आग को चूम राख

    सी झड़ जाती है ।
    भावनाओं की महीन चाभियाँ गज़ब का बिम्ब उठाया है ,प्रेम के बीज को बचाये रखने की जद्दोजहद ,
    बस कमाल , कमाल और कमाल ही लिखा है ।
    यूँ ही कलम सशक्त रहे और हमको अच्छा अच्छा पढ़ने को मिलता रहे , इसी शुभेच्छा के साथ ।
    सस्नेह

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  17. प्रेम में डूबी स्त्री---
    अनगिनत रूप धारण करती है
    प्रेम के...
    बाँधकर रखती है
    अपने दुपट्टे की छोर से
    भावनाओं की महीन चाभियाँ
    और
    बचाए रखती है
    सृष्टि में प्रेम के बीज

    इन पंक्तियों में नारी के प्रेम का समस्त भाव निहित है जिसे आपने बहुत ही सुन्दरतम निखार दिया है

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  18. बहुत सुन्दर रचना

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  19. मनस्वी का चित्र बहुत ही खूबसूरत है।
    आपकी रचना सिर्फ रचना नहीं होती ये वो जाम है जो ग्लास से छलक जाता है, या यूं कहें कि किसी लंबी, कठोर मेहनत का निचोड़ है।
    प्रेम में डूबी स्त्री के कितने रूप है कौन जान पाया है?
    '……बंजर सांसे……' वाली पंक्तियां मुझे बहुत पसंद आई।

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  20. चूँकि आपने पहले मनस्वी की परिकल्पनाओं के परों पर सवार तूलिकाओं से उकेरे गये चित्र को उकेरा है, इस लिए पहले उसकी बात .. निःसन्देह हमेशा की तरह बेहतरीन रचना। अगर गलत नहीं होऊँ , तो medium शायद Water Colour है।
    पर इस रचना के साथ बेमेल हो रही है, क्यों कि "प्रेम में पड़ी स्त्री" कदापि इस तरह संवेदनहीन हो कर कमल के फूलों को नहीं तोड़ सकती .. शायद ...
    रही बात आपकी रचना की तो, आप और आपकी रचना, इसके लिए किसी सराहना या प्रतिक्रिया की मोहताज़ कतई नहीं हैं, वैसे भी उपर्युक्त सुधीजनों ने अपनी प्रतिक्रियाओं के समक्ष कहने लायक कोटर भर भी जगह छोड़ा ही नहीं है, सभी की प्रतिक्रियाएँ, आपकी रचना की तरह,अपने आप में नायाब हैं .. बस .. "गंगाजल-सी" के बाद कोष्ठक में (गंगोत्री के आसपास) भी लिख दिया कीजिए 😀😀😀 क्योंकि उसके आगे की गंगा हम पवित्र भक्तजनों की मेहरबानी से मैली हो चुकीं हैं .. शायद ...

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  21. प्रेम में डूबी स्त्री क्या कुछ नहीं कर जाती है ...
    बहुत मासूमियत से बुने हैं पल ... हर बंध लाजवाब ...

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  22. उन्मत्त प्रेम-गंध का इन्द्रधनुषी रंग । अति सुन्दर सृजन ।

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  23. प्रेम में डूबी स्त्री---
    मछली जैसी होती हैं
    स्वयं में खोयी
    मचलती रहती हैं
    प्रेम की धाराओं में
    बेआवाज़ गुनगुनाती हुई
    राह भूलकर
    मछुआरे की नाव पर
    सवार होकर
    एक दिन हो जाती है
    टूटता सितारा।

    बहुत सुंदर और मंत्रमुग्ध करने वाली रचना

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  24. बचाए रखती है , सृष्टि में प्रेमबीज

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...