Thursday, 16 May 2024

ज़िंदगी



ख़ानाबदोश की प्रश्नवाचक यात्रा -सी
दर-ब-दर भटकती है ज़िंदगी
समय की बारिश के साथ
बहता रहता है उम्र का कच्चापन
देखे-अनदेखे पलों के ब्लैक बोर्ड पर
उकेरे
तितली,मछली,फूल, जंगल
चिड़िया,मौसम, हरियाली, नदी,
 सपनीले चित्रों के पंख
अनायास ही पोंछ दी जाती है
बिछ जाती है 
पैरों के नीचे
ख़ुरदरी , कँटीली पगडंड़ियाँ...
जिनपर दौड
कर आकाश छूने की
लालसा में ख़ुद को
भुलाये बस भागती
रहती है ज़िंदगी...।
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-श्वेता

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...