बुहारकर फेंके गये
तिनकों के ढेर
चोंच में भरकर चिड़िया
उत्साह से दुबारा बुनती है
घरौंदा।
कतारबद्ध,अनुशासित
नन्हीं चीटियाँ
बिलों के ध्वस्त होने के बाद
गिड़गिड़ाती नहीं,
दुबारा देखी जा सकती हैं
निःशब्द गढ़ते हुए
जिजीविषा की परिभाषा।
नन्ही मछलियाँ भी
पहचानती हैं
मछुआरों की गंध
छटपटाती वेदना से रोती हुई
जाल में कैद के साथियों की पीड़ा देख
किनारे पर न आने की
सौंगध लेती हैं
पर,लहरों की अठखेलियों में
भूलकर सारा इतिहास
खेलने लगती हैं फिर से
मगन किनारों पर।
प्रमाणित है-
बीत रहा समय लौटकर नहीं आता
किंतु सीख रही हूँ...
सूरज, चंद, तारे,हवा,
चिड़ियों,चींटियों, मछलियों
की तरह
संसार के राग-विराग,
विसंगतियों से निर्विकार,अप्रभावित
एकाग्रचित्त,मौन,
अंतस स्वर के नेतृत्व में
कर्म में लीन रहना,
सोचती हूँ,
समय की धार में खेलती
भावनाओं की बिखरी अस्थियाँ
और आस-पास उड़ रही
आत्मविश्वास की राख़
बटोरकर गूँथने से
मन की देह फिर से
आकार लेकर दुरूहताओं से
जूझने के लिए तैयार होगी ।
ठूँठ पर बने नीड़,
माटी में दबे बीज के फूटने की आस
की तरह,
जटिल परिस्थितियों में
नयी संभावनाओं की प्रतीक्षा में
जीवन की सुगबुगाहट
महसूसने से ही
सृष्टि का अस्तित्व है।
#श्वेता सिन्हा
०१/०१/२०२१