Saturday, 10 August 2019

केसर क्यारी में


एक स्वप्न आकार ले रहा
मेरी केसर क्यारी में
डल में उतर रहीं जलपरियाँ
घाटी हँसी खुमारी में

चिनार और पाइन मुस्काये
कोनिफर भी मंगल गाये
श्वेत उतंग मस्तक गर्वोन्मत 
बाँधनी चुनर किरणें फैलाये
चाँदनी की मोहक मंजरियाँ
सज गयी निशा की यारी में

एक स्वप्न आकार ले रहा
मेरी केसर क्यारी में

दिन अखरोटी पलकें खोले
पुष्प चूम मधुप डोगरी बोले
रात खुबानी बेसुध हुई शिकारा में
बादल सतरंगी पाखें खोले
हवा खुशी की चिट्ठी लिख रही 
चिड़ियों की किलकारी में

एक स्वप्न आकार ले रहा
मेरी केसर क्यारी में

बारुद नहीं महके लोबान 
गूँजे अल्लाह और अजान
हर-हर महादेव जयकारा
सौहार्द्र गाये मानवता गान
रक्त में बहते विष चंदन होंंगे
समय की पहरेदारी में

एक स्वप्न आकार ले रहा
मेरी केसर क्यारी में

#श्वेता सिन्हा

Tuesday, 6 August 2019

जब तुम.....


मन के थककर 
चूर होने तक
मन के भीतर ही भीतर
पसीजते दीवारों पर
निरंतर स्पंदित,
अस्पष्ट तैरते 
वैचारिक दृश्य,
उलझन,उदासी,बेचैनी से
मुरुआता,छटपटाता हर लम्हा
मन की थकान से 
निढ़ाल तन की 
बदहवास लय
अपने दायरे में बंद
मौन की झिर्रियों पर
साँस टिकाये
देह और मन का
बेतरतीब तारतम्य
बेमतलब के जीवन से
विरक्त मन
मुक्त होना चाहता है
देह के बंधन से
जब तुम रुठ जाते हो।

#श्वेता सिन्हा




मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...