Thursday, 2 December 2021

उम्मीद



बेतरतीब उगी हुई
घनी जंगली घास-सा दुख
जिसके नीरस अंतहीन छोर के
उस पार कहीं दूर से
किसी हरे पेड़ की डाल पर
बोलती सुख की चिड़िया का 
मद्धिम स्वर 
उम्मीद की नरम दूब-सा
थके पाँव के छालों को
सहलाकर कहती है-
ज़िंदगी के सफ़र का
 खूबसूरत पड़ाव
 तुम्हारी प्रतीक्षा में है। 


बहुत पास से गुज़रा तूफान
धरती पर लोटती
बरगद,पीपल की शाख,
सड़क के बीचोबीच पसरा नीम
असमय काल-कलवित  
धूल-धूसरित,गुलमोहर की
डालियाँ, पत्तियाँ, कलियाँ 
 पक्षियों के घरौंदे,
बस्ती के कोने में जतन से बाँधी गयी
नीली प्लास्टिक की छत,
कच्ची माटी की भहराती दीवार
अनगिनत सपनें
बारिश में बहकर नष्ट होते देखती रही
उनके दुःख में शामिल हो 
शोक मनाती रही रातभर उनींदी
अनमनी भोर की आहट पर
पेड़ की बची शाखों पर
 घोंसले को दुबारा बुनने के उत्साह से
 किलकती तिनका बटोरती
 चिड़ियों ने खिलखिलाकर कहा-
एक क्षण से दूसरे क्षण की यात्रा में
 समय का शोकगीत गाने से बेहतर है
 तुम भी चिड़िया बनकर
उजले तिनके चुनकर 
 चोंच मे भरो और हमारे संग-संग
 जीवन की उम्मीद का
गीत गुनगुनाओ।

#श्वेता सिन्हा
३ दिसंबर २०२१


मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...