सुरमई अंजन लगा निकली निशा।
चाँदी की पाजेब से छनकी दिशा।।
सेज तारों की सजाकर
चाँद बैठा पाश में,
सोमघट ताके नयन भी
निसृत सुधा की आस में,
अधरपट कलियों ने खोले,
मौन किरणें चू गयी मिट गयी तृषा।
छूके टोहती चाँदनी तन
निष्प्राण से निःश्वास है,
सुधियों के अवगुंठन में
बस मौन का अधिवास है,
प्रीत की बंसी को तरसे,
अनुगूंजित हिय की घाटी खोयी दिशा।
रहा भींगता अंतर्मन
चाँदनी गीली लगी,
टिमटिमाती दीप की लौ
रोई सी पीली लगी,
रात चुप, चुप है हवा
स्वप्न ने ओढ़ी चुनर जग गयी निशा।
#श्वेता🍁