एक नन्ही ख़्वाहिश
चाँदनी को अंजुरी में भरने की,
पिघलकर उंगलियों से टपकती
अंधेरे में ग़ुम होती
चाँदनी देखकर
चाँदनी देखकर
उदास रात के दामन में
पसरा है मातमी सन्नाटा
ठंड़ी छत को छूकर सर्द किरणें
जगाती है बर्फीला एहसास
कुहासे जैसे घने बादलों का
काफिला आकर
ठहरा है गलियों में
पीली रोशनी में
नम नीरवता पाँव पसारती
पल-पल गहराती
पत्तियों की ओट में मद्धिम
फीका सा चाँद
अपने अस्तित्व के लिए लड़ता
तन्हा रातभर भटकेगा
कंपकपाती नरम रेशमी दुशाला
तन पर लिपटाये
मौसम की बेरूखी से सहमे
शबनमी सितारे उतरे हैं
फूलों के गालों पर
भींगी रात की भरी पलकें
सोचती है
सोचती है
क्यूँ न बंद कर पायी
आँखों के पिटारे में
कतरनें चाँदनी की,
अधूरी ख़्वाहिशें
अक्सर बिखरकर
रात के दामन में
यही सवाल पूछती हैं।
रात के दामन में
यही सवाल पूछती हैं।