व्यक्ति से विचार
और विचार से फिर
वस्तु बनाकर
भावनाओं के
थोक बाज़ार में
ऊँचे दामों में
में बेचते देख रही हूँ।
और विचार से फिर
वस्तु बनाकर
भावनाओं के
थोक बाज़ार में
ऊँचे दामों में
में बेचते देख रही हूँ।
चश्मा,चरखा,
लाठी,धोती,टोपी
खादी,
बेच-बेचकर
संत की वाणी
व्यापारी बहेलियों को
शिकार टोहते देख रही हूँ।
सत्य से आँखें फेर,
आँख,कान,मुँह
बंद किये
आदर्शों का खद्दर ओढ़े
भाषणवीर
अहिंसकों को
गाल बजाते देख रही हूँ।
"बापू" की
करूणामयी
रेखाचित्रों को
आज़ादी के
ऐतिहासिक पृष्ठों से
निकालकर चौराहों पर
पत्थर की मूर्तियों में
बदलते बहुरूपियों को
महत्वाकांक्षाओं की अटारी पर
कटारी लिए मचलते देख रही हूँ।
और...
आज भी
बापू की जीवित
आत्मा को मारने की
कुचेष्टा में
अपनी बौद्धिक वसीयत की बंदूकें
सौंपकर अपने बच्चों को
हत्यारे "गोडसे" का
प्रतिरूप
बनाते देख रही हूँ।
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#श्वेता सिन्हा
३० जनवरी२०२१