व्यक्ति से विचार
और विचार से फिर
वस्तु बनाकर
भावनाओं के
थोक बाज़ार में
ऊँचे दामों में
में बेचते देख रही हूँ।
और विचार से फिर
वस्तु बनाकर
भावनाओं के
थोक बाज़ार में
ऊँचे दामों में
में बेचते देख रही हूँ।
चश्मा,चरखा,
लाठी,धोती,टोपी
खादी,
बेच-बेचकर
संत की वाणी
व्यापारी बहेलियों को
शिकार टोहते देख रही हूँ।
सत्य से आँखें फेर,
आँख,कान,मुँह
बंद किये
आदर्शों का खद्दर ओढ़े
भाषणवीर
अहिंसकों को
गाल बजाते देख रही हूँ।
"बापू" की
करूणामयी
रेखाचित्रों को
आज़ादी के
ऐतिहासिक पृष्ठों से
निकालकर चौराहों पर
पत्थर की मूर्तियों में
बदलते बहुरूपियों को
महत्वाकांक्षाओं की अटारी पर
कटारी लिए मचलते देख रही हूँ।
और...
आज भी
बापू की जीवित
आत्मा को मारने की
कुचेष्टा में
अपनी बौद्धिक वसीयत की बंदूकें
सौंपकर अपने बच्चों को
हत्यारे "गोडसे" का
प्रतिरूप
बनाते देख रही हूँ।
-----////----
#श्वेता सिन्हा
३० जनवरी२०२१
सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteराष्ट्र पिता बापू को शत-शत नमन।
सुन्दर सृजन।
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना ब्लॉग "पांच लिंकों का आनन्द" सोमवार 01 फरवरी 2021 को साझा की गयी है......... पाँच लिंकों का आनन्द पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteकटु सत्य
ReplyDeleteबिलकुल सही कहा श्वेता जी आपने ।
ReplyDeleteऔर...
ReplyDeleteआज भी
बापू की जीवित
आत्मा को मारने की
कुचेष्टा में
अपनी बौद्धिक वसीयत की बंदूकें
सौंपकर अपने बच्चों को
हत्यारे "गोडसे" का
प्रतिरूप
बनाते देख रही हूँ।
शब्दों में प्राणवायु भरने में पारंगत प्यारी श्वेता जी, आप अद्भुत लिखती हैं...।
आपको बधाई और हमें आभार ।
सादर।
समसामयिक यथार्थ पूर्ण चिंतन..
ReplyDeleteबहुत अच्छी रचना श्वेता जी
ReplyDeleteअच्छी रचना, बधाई आपको।
ReplyDeleteआदरणीया मैम,
ReplyDeleteबहुत सशक्त सटीक कविता जो इस कटु सत्य को सामने रख देती है। आज जिस प्रकार गांधी जी के नाम की रोटियाँ सेंकी जाती हैं और बापू के सारे सिद्धांतों को भुला कर और उन सिद्धांतों को तोड़ मरोड़ कर, उनका अपमान कर रहे हैं, वह सच में उनकी हत्या करने के बराबर है, बल्कि उस से बढ़ कर अपराध है। यह कविता मेरे दिल के बहुत करीब है क्योंकि बापू सदा ही मेरे आदर्श रहे हैं, जब से नानी ने पहली बार उनकी कहानी सुनाई , तब से।
इस सुंदर और सटीक कविता के लिए हृदय से अनेकों आभार और आपको प्रणाम।
आदरणीया मैम,
ReplyDeleteबहुत सशक्त सटीक कविता जो इस कटु सत्य को सामने रख देती है। आज जिस प्रकार गांधी जी के नाम की रोटियाँ सेंकी जाती हैं और बापू के सारे सिद्धांतों को भुला कर और उन सिद्धांतों को तोड़ मरोड़ कर, उनका अपमान कर रहे हैं, वह सच में उनकी हत्या करने के बराबर है, बल्कि उस से बढ़ कर अपराध है। यह कविता मेरे दिल के बहुत करीब है क्योंकि बापू सदा ही मेरे आदर्श रहे हैं, जब से नानी ने पहली बार उनकी कहानी सुनाई , तब से।
इस सुंदर और सटीक कविता के लिए हृदय से अनेकों आभार और आपको प्रणाम।
निशब्द हूं श्वेता मैं, मेरे भाव जो मैं लिख नहीं पाती सिर्फ घुमड़ते रहते है मन सागर में आपने कितनी स्पष्टता से लिख दिए।
ReplyDeleteबस इतना ही कहूंगी कि हे फकीर तू उस पहली गोली से ही क्यों नहीं मर गया तो यूं रोज तो नहीं मरना होता _ _ _
बहुत शानदार सृजन ।
प्रभावशाली लेखन।
ReplyDeleteअपनी बौद्धिक वसीयत की बंदूकें
ReplyDeleteसौंपकर अपने बच्चों को
हत्यारे "गोडसे" का
प्रतिरूप
बनाते देख रही हूँ।
वाह!!!
उम्दा !!!
यथार्थपरक रचना श्वेता जी 🌹🙏🌹
..... और हम कितने विवश हैं ऐसे विभत्स सत्य को देखते रहने के लिए । अत्यंत प्रभावी सृजन ।
ReplyDeleteबापू के प्रति लिखी भावपूर्ण और प्रभावी रचना
ReplyDeleteबधाई
बहुत बहुत सराहनीय , बहुत कुछ सोचने समझने के लिए बाध्य करने वाली रचना
ReplyDelete