Thursday, 9 July 2020

बुद्धिजीवी


चित्र:मनस्वी

मृदुल मुस्कान और
विद्रूप अट्टहास का
अर्थ और फ़र्क़ जानते हैं
किंतु 
जिह्वा को टेढ़ाकर
शब्दों को उबलने के
तापमान पर रखना
जरूरी है।
हृदय की वाहिनियों में
बहते उदारता और प्रेम
की तरंगों को
तनी हुई भृकुटियों  
और क्रोध से 
सिकुड़ी मांसपेशियों ने
सोख लिया हैं।

ठहाके लगाना 
क्षुद्रता है और
गंभीरता;
वैचारिक गहनता का मीटर,
वे जागरूक
बुद्धिजीवी हैं
उनमें योग्यता है कि
वे हो जाये उदाहरण,
प्रणेता और अनुकरणीय
क्योंकि वे अपने दृष्टिकोण
की परिभाषाओं के
जटिल एवं तर्कपूर्ण
चरित्र में उलझाकर 
शाब्दिक आवरण से
मनोभावों को 
कुशलता से ढँकने का
हुनर जानते हैं।

विवश हैं ...
चाहकर भी
गा नहीं सकते प्रेम गीत,
अपने द्वारा रचे गये
 आभा-मंडल के
 वलय से बाहर निकलने पर
निस्तेज हो जाने से
भयभीत भी शायद...।

#श्वेता सिन्हा
९जुलाई २०२०

Monday, 6 July 2020

साधारण होना...



रोटी-दाल,
चावल-सब्जी से इतर
थाली में परोसी गयी 
पनीर या खीर देख
खुश हो जाना,
बहुत साधारण बात होती है शायद...
भरपेट मनपसंद भोजन और
आरामदायक बिस्तर पर
चैन से रातभर सो पाने की इच्छा।

जो मिला जीवन में
कुछ शिकायतों के साथ
नियति मानकर स्वीकार करना
बिना फेर-बदल किये
रस्मों रिवाजों,परंपराओं में,
ढर्रे को सहजता से अपनाना
चंद साधारण सपने देखना।

भीड़ का गुमनाम चेहरा,
एक मौन भीड़,
भेड़-बकरी के झुंड की तरह
किसी चरवाहे के इशारे पर
सर झुकाये पगडंडियों की
धूल उड़ाना और बिना प्रतिकार किये
बेबस,निरीह मानकर
स्वयं अपने कंठ में बँधी
 रस्सी का सिरा किसी
असाधारण के हाथ थमा देना।

जन्म से मृत्यु तक की
बेआवाज़ यात्रा
करने वाले बेनाम,
जिन्हें धिक्कारा गया
साधारण मनुष्य कहकर,
जो प्रेम और सुख की लालसा में
जी लेते हैं पूरा जीवन।

सोचती हूँ...
क्यों निर्रथक लगता है
साधारण होना...
इतिहास में दर्ज़ सभ्यताओं के
अति विशिष्ट योद्धाओं,विद्रोहियों
असाधारण मनुष्यों के अवशेष
गवाह हैं 
सृष्टि ने जीवों की रचना
कालजयी होने के लिए नहीं की
क्या सचमुच फ़र्क पड़ता है
साधारण, विशिष्ट या अतिविशिष्ट
होने से...
सभी तो जन्म लेते हैं
देह में कफ़न लपेटे।

#श्वेता सिन्हा
६ जुलाई २०२०

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...