Saturday, 27 March 2021

कली केसरी पिचकारी


कली केसरी पिचकारी 
मन अबीर लपटायो,
सखि रे! गंध मतायो भीनी
राग फाग का छायो। 

चटख कटोरी इंद्रधनुषी
वसन वसुधा रंगवायो,
सरसों पीली,नीली नदियाँ
सुमनों ने माँग सजायो।

कचनारी रतनारी डाली 
 लचक मटक इतरायो,
 सारंग सुगंध सुधहीन भ्रमर
 बाट बटोही बिसरायो।

सखि रे! गंध मतायो भीनी
राग फाग का छायो।

बाबरी कूहके अमराई
बँसवारी बिरवा अँखुआयो,
कली-कली मुँहजोर 
ललित लास्य ललचायो।

उचक-उचक चूमे तितली
मदन मालती  मुसकायो, 
सिंदूरी किरणों के तीर
धरणी मुंदरी पहिनायो।

सखि रे! गंध मतायो भीनी
राग फाग का छायो। 

राग-द्वेष का होम करें
होलिका हुलस हुमकायो,
प्रीत भरी पिचकारी धार
मन के मैल छुड़ायो।
 
उत्सव उमंग मंगलमय
नेह कलश लुढकायो,
फागुनी रूनझुनी धुन पर
गीत-गोविंद मन गायो।
 
सखि रे! गंध मतायो भीनी
राग फाग का छायो ।

#श्वेता सिन्हा
(२७ मार्च २०२१)

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