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Thursday, 28 January 2021

चश्मे... मतिभ्रम


उड़ती गर्द में
दृश्यों को साफ देखने की 
चाहत में
चढ़ाये चश्मों से
अपवर्तित होकर
बनने वाले परिदृश्य
अब समझ में नहीं आते 
तस्वीरें धुंधली हो चली है
निकट दृष्टि में आकृतियों की
भावों की वीभत्सता से
पलकें घबराहट से
स्वतः मूँद जाती हैं,
दूर दृष्टि में
विभिन्न रंग के
सारे चेहरे एक से... 
परिस्थितिनुरूप
अलग-अलग समय पर 
अलग-अलग
कोणों से
खींची तस्वीरों को
जोड़कर प्रस्तुत की गयी
कहानियों से
उत्पन्न मतिभ्रम 
पीड़ा का 
कारण बन जाता है।

सोचती हूँ
भ्रमित लेंस से बने
चश्मे उतार फेंकना ही
बेहतर हैं,
धुंध भरे दृश्यों 
से अनभिज्ञ,
तस्वीरों के रंग में उलझे बिना,
ध्वनि,गंध,अनुभूति के आधार पर
साधारण आँखों से दृष्टिगोचर
दुनिया महसूसना 
 ज्यादा सुखद एहसास हो 
शायद...।
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#श्वेता सिन्हा
२८ जनवरी २०२१

 

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