नज़्म-----चेहरे पे कितने भी चेहरे लगाइए,दुनिया जो जानती वो हमसे छुपाइए।माना; अब आपके दिल में नहीं हैं हम,शिद्दत से अजनबीयत का रिस्ता निभाइए।हम ख़ुद ही मुँह फेर लेंगे आहट पे आपकी,आँखें चुराने की आप न ज़हमत उठाइए ।जी-हज़ूरी ख़्वाहिशों की करते नहीं अब हम,जा ही रहे हैं, साथ सारे एहसान ले जाइए।दर्द है भी या नहीं कोई एहसास न रहा,बना दिया है बुत, सज्दे में सर तो झुकाइए।दुआओं के सिवा,इख़्तियार में कुछ बचा नहीं,अब शौक से हिज्र की रस्में निभाइए।
#श्वेता
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों के आनन्द में" शनिवार 31 अगस्त 2024 को लिंक की जाएगी .... http://halchalwith5links.blogspot.in पर आप भी आइएगा ... धन्यवाद! !
ReplyDeleteवाह ! इश्क़ के इंतहा को बयान करती बेहतरीन ग़ज़ल
ReplyDeleteप्रिय श्वेता जी,आपकी लेखनी से निकले ये भाव हृदय की गहराई को छू लेते हैं, बहुत ही सुन्दर सार्थक और भावप्रवण रचना सादर
ReplyDeleteलाजवाब
ReplyDeleteविसंगतियों को बखूबी सामने रखा है .
ReplyDeleteये तो सफर-ए-नज़्म है,
ReplyDeleteमुक्कमल गजल हो,
जो आप यूं ही खुद को आजमाइए!
मैं बायाँ नहीं करना चाहता की मुझे कितनी खुशी हो रही है, बहुत दिनों से ऐक्टिव हिन्दी ब्लॉगगर्स को खोज रहा था!
अपनी दुआ तो मकम्मल हो गई!
लिखते रहिए!
तो = जो *
Deleteइश्क़ की कोई इन्तहा होती है ... शायद हाँ, शायद ना ... लाजवाब लिखा है ...
ReplyDeleteहृदय में उतरते भाव.., लाजवाब सृजन श्वेता जी !
ReplyDeleteमाना; अब आपके दिल में नहीं हैं हम,
ReplyDeleteशिद्दत से अजनबीयत का रिस्ता निभाइए।
वाह!!!
हम ख़ुद ही मुँह फेर लेंगे आहट पे आपकी,
आँखें चुराने की आप न ज़हमत उठाइए ।
बहुत ही हृदयस्पर्शी एवं भावपूर्ण
लाजवाब सृजन ।