दिन के माथे पर बिखर गयी साँझ की लटें
स्याह आसमां के चेहरे से नज़रे ही न हटें
रात के परों पे उड़ती तितलियाँ जुगनू की
अलसाता चाँद बादलों में लेने लगा करवटें
फिसलती चाँदनी हँसी फूलों के आँचल पर
निकले टोलियों में सितारों की लगी जमघटें
पूछ रही हवाएँ छूकर पत्तों के रूखसारों को
क्यों खामोश हो लबों पे कैसी है सिलवटें
सोये झील के आँगन में लगा है दर्पण कोई
देख के मुखड़ा आसमां सँवारे बादल की लटें
चुपके से हटाकर ख्वाबों के अन्धेरे परदे
सुगबुगाने लगी नीदें गुनगुनाने लगी आहटे
#श्वेता🍁
स्याह आसमां के चेहरे से नज़रे ही न हटें
रात के परों पे उड़ती तितलियाँ जुगनू की
अलसाता चाँद बादलों में लेने लगा करवटें
फिसलती चाँदनी हँसी फूलों के आँचल पर
निकले टोलियों में सितारों की लगी जमघटें
पूछ रही हवाएँ छूकर पत्तों के रूखसारों को
क्यों खामोश हो लबों पे कैसी है सिलवटें
सोये झील के आँगन में लगा है दर्पण कोई
देख के मुखड़ा आसमां सँवारे बादल की लटें
चुपके से हटाकर ख्वाबों के अन्धेरे परदे
सुगबुगाने लगी नीदें गुनगुनाने लगी आहटे
#श्वेता🍁
वाहहह
ReplyDeleteबहुत खूबसूरत ग़ज़ल
बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका लोकेश जी।
Deleteवाह ! बेहतरीन प्रस्तुति ! बहुत खूब आदरणीय ।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका सर।
Deleteआपका आशीष बना रहे सदैव।
सुंदर प्राकृतिक बिंबों से सजी रचना
ReplyDeleteजी, मीना जी बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका।
Deleteपूछ रही हवाएँ छूकर पत्तों के रूखसारों को
ReplyDeleteक्यों खामोश हो लबों पे कैसी है सिलवटें
.... मानवीकरण की विलक्षण बिम्ब आकृतियों से सजी धजी चमत्कृत शैली में सुगबुगाती गुनगुनाती ग़ज़ल की आहट!!!
आपकी मनभावनी प्रतिक्रिया के लिए हृदय से आभार आपका विश्वमोहन जी। यूँ ही सदैव उत्साह बढ़ाते रहे प्रार्थना है।
Deleteadbhut....bahut sundar likha hai...फिसलती चाँदनी हँसी फूलों के आँचल पर
ReplyDeletewah kya khayal hai....
sanjay bhaskar
बहुत बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका संजय जी। आपकी सुंदर प्रतिक्रिया का इंतज़ार रहता है।बहुत धन्यवाद आपका।
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