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Thursday, 3 August 2017

मन मुस्काओ न छोड़ो आस

मन मुस्काओ न छोड़ो आस

जीवन के निष्ठुर राहों में
बहुतेरे स्वप्न है रूठ गये
विधि रचित लेखाओं में
है नीड़ नेह के टूट गये
प्रेम यज्ञ की ताप में झुलसे
छाले बनकर है फूट गये
मन थोड़ा तुम धीर धरो
व्यर्थ नयन न नीर भरो

न बैठो तुम होकर निराश
मन मुस्काओ न छोड़ो आस

उर विचलित अंबुधि लहरों में
है विरह व्यथा का ज्वार बहुत
एकाकीपन के अकुलाहट में
है मिलते अश्रु उपहार बहुत
अब सिहर सिहर के स्वप्नों को
पंकिल करना स्वीकार नहीं
फैले हाथों में रख तो देते हो
स्नेह की भीख वो प्यार नहीं

रहे अधरों पर तनिक प्यास
मन मुस्काओ न छोड़ो आस

अमृतघट की चाहत में मैंने
पल पल खुद को बिसराया है
मन मंदिर का अराध्य बना
खरे प्रेम का दीप जलाया है
देकर आहुति अब अश्कों की
ये यज्ञ सफल  कर जाना है
भावों का शुद्ध समर्पण कर
आजीवन साथ निभाना है

कुछ मिले न मिले न हो निराश
मन मुस्काओ न छोड़ो आस

      #श्वेता🍁


13 comments:

  1. वाहः बहुत सुंदर रचना

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    1. बहुत ही आभार लोकेश जी।

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  2. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका आदरणीय।

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  3. जी, आपको भी शुभकामनाएँ गगन जी।

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  4. '' मन मुस्काओ ना छोड़ो आस -'' शीर्षक ही कितना आशा भरा है !! विरह की पीड़ा को पीछे धकेलती - नवजीवन की आशा से भरी सुंदर रचना --------

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    1. जी, बहुत आभार आपका रेणु जी।
      आपकी सुंदर ऊर्जा से भरी प्रतिक्रिया मन प्रफुल्लित करती है।

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  5. कुछ मिले न मिले न हो निराश
    मन मुस्काओ ना छोड़ो आस|
    बहुत सुंदर स्वेता। आशा से ही जीवन जगा जा सकता हैं।

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    1. बहुत बहुत आभार शुक्रिया आपका ज्योति जी।

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  6. सुन्दर .. भावपूर्ण ... मन की निराशा को दूर करना भी प्रेम में जीना है ... शुद्ध समर्पण है जहाँ वहां निराशा कहाँ ...

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    1. बहुत बहुत आभार आपके सुंदर प्रतिक्रिया के लिए नासवा जी। तहेदिल से शुक्रिया आपका।

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  7. Beautiful thoughts with realistic wordings.Very nice. Sweta ji do you have any books of your collection. or we can get it into these blogs only. keep writing....regards.

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।