शब्द हो गये मौन सारे
भाव नयन से लगे टपकने,
अस्थिर चित बेजान देह में
मन पंछी बन लगा भटकने।
साँझ क्षितिज पर रोती किरणें
रेत पे बिखरी मीन पियासी,
कुछ भी सुने न हृदय है बेकल
धुंधली राह न टोह जरा सी।
रूठा चंदा बात करे न
स्याह नभ ने झटके सब तारे,
लुकछिप जुगनू बैठे झुरमुट
बिखरे स्वप्न के मोती खारे।
कौन से जाने शब्द गढ़ूँ मैं
तू मुस्काये पुष्प झरे फिर,
किन नयनों से तुझे निहारूँ
नेह के प्याले मधु भरे फिर।
तुम बिन जीवन मरूस्थल
अमित प्रीत तुम घट अमृत,
एक बूँद चख कर बौराऊँ
तुम यथार्थ बस जग ये भ्रमित।
#श्वेता🍁
लाजवाब....
ReplyDeleteबहुत ही सुन्दर, अविस्मरणीय प्रस्तुति ।
किन नयनो से तुझे निहारूँ
नेह के प्याले मधु भरे फिर...
वाह!!!
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी,आपसे इतनी सुंदर प्रतिक्रिया पाना बहुत सुखद है।कृपया नेह बनाये रखे।
Deleteअति आभार आपका दी।मेरी रचना को मान देने के लिए तहेदिल से शुक्रिया।
ReplyDeleteसादर।
सुंदर! सही में " शब्द हो गए मौन " !
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका विश्वमोहन जी।
Deleteवाह !
ReplyDeleteबेकल व्यथित मन की कश्मकश और प्रिय का स्मरण करती विछोह में डूबी नायिका के नज़ाकत भरे मनोभावों को ख़ूब परवाज़ दिए हैं। हृदयस्पर्शी रचना। बधाई एवं शुभकामनाऐं।
बहुत बहुत आभार आपका रवींद्र जी।तहेदिल से बहुत शुक्रिया।
Deleteमन के कोमल भाव और सुंदर शब्द शिल्प !!!!!!!!!!! समर्पण का चरम छूती अप्रितम रचना प्रिय श्वेता जी | और अंतिम चार पंक्तियाँ के तो क्या कहने --------------
ReplyDeleteतुम बिन जीवन मरूस्थल
अमित प्रीत तुम घट अमृत,
एक बूँद चख कर बौराऊँ
तुम यथार्थ बस जग ये भ्रमित।
बहुत सुंदर !!!!!!!!! सचमुच जब इन्सान प्रेम में आकंठ डूबा हो तो दुनिया भ्रमित और प्रियतम ही एकमात्र यथार्थ नजर आता है | सस्नेह शुभकामना आपको |
बहुत बहुत बहुत आभार आपका प्रिय रेणु जी।आपकी विस्तृत प्रतिक्रिया मन को आहृलादित कर जाती है।तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteप्रेम की अनेक अभिव्यक्तियों में से एक मौन अभिव्यक्ति भी है । वाणी के मौन होते ही नयन बोलने लगे, मन भटककर जाने कहाँ से कहाँ पहुँच गया....
ReplyDeleteबहुत सुंदर अभिव्यक्ति ! वियोग वेदना को मुखर करती हुई...बधाई श्वेताजी ।
बहुत बहुत आभार मीना जी।तहेदिल से शुक्रिया जी।
Deleteसुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सर।
Deletebahot badhiya ....antar man ki pida ko kya khoob darshaya hai
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार नीतू जी। तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteबहुत सुन्दर।
ReplyDeleteजी बहुत आभार आपका ध्रुव जी।
Deleteबहुत खूबसूरत भाव संयोजन .
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी।तहेदिल से शुक्रिया।
Deleteतुम बिन जीवन मरुस्थल
ReplyDeleteअमित प्रीत तुम घट अमृत....अति सुंदर
बहुत बहुत आभार आपका शकुंतला जी।तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteमन के भावों को व्यक्त करती उम्दा रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी।
Deleteइतनी पीड़ा? इतना क्रंदन?
ReplyDeleteउसके बिन अब जीना सीख, प्रीत न मिलती, मांगे भीख !