धरा के जीवन सूर्य और प्रकृति के उपासना का सबसे बड़ा उत्सव छठ पर्व के रूप में मनाया जाता है।बिहार झारखंड एवं उत्तर प्रदेश की ओर आने वाली हर बस , ट्रेन खचाखच भरी हुई है।लोग भागते दौड़ते अपने घर आ रहे है।कुछ लोग साल में एक बार लौटते है अपने जड़ों की ओर,रिश्तों की टूट-फूट के मरम्मती के लिए,माटी की सोंधी खुशबू को महसूस करने अपने बचपन की यादों का कलैंडर पलटने के लिए,गिल्ली-डंडा, सतखपड़ी,आइस-पाइस,गुलेल और आम लीची की के रस में डूबे बचपन को टटोलने के लिए,लाड़ से भीगी रोटी का स्वाद चखने।।माँ-बाबू के अलावा पड़ोस की सुगनी चाची,पंसारी रमेसर चाचा की झिड़की का आनंद लेने।
लोक आस्था के इस महापर्व का उल्लेख रामायण और महाभारत में भी मिलता है।ऐसी मान्यता है कि आठवीं सदी में औरंगाबाद(बिहार) स्थित देव जिले में छठ पर्व की परंपरागत शुरूआत हुई थी।
चार दिवसीय इस त्योहार में आस्था का ऐसा अद्भुत रंग अपने आप में अनूठा है।यह ऐसा एक त्योहार है जो कि बिना पुरोहित के सम्पन्न होता है।साफ-सफाई और शुद्धता का विशेष ध्यान रखा जाता है।घर तो जैसे मंदिर में तबदील हो जाता है।घर की रसोई में लहसुन-प्याज दिवाली के दिन से ही निषिद्ध हो जाता है।घर की हर चीज नहा-धोकर पूजा में सम्मिलित होने के लिए तैयार हो जाती है।
नहाय-खाय यानि त्योहार के प्रथम दिवस पर , व्रती महिला भोर में ही नहा धोकर पूरी शुचिता से लौकी में चने की दाल डालकर सब्जी और अरवा चावल का भात बनाती है।सेंधा नमक और खल में कूटे गये मसालों से जो प्रसाद बनता है उसका स्वाद अवर्णनीय है।
घर पर ही गेहूँ बीनकर, धोकर सुखाया जाता है पूरे नियम से,जब तक गेहूँ न सूखे उपवास रखा जाता है।
बाज़ार हाट सूप, दौरा,सुप्ती,डाला ईख,जम्हेरी नींबू,केला,नारियल,अदरख,हल्दी,गाज़र लगे जड़ वाले पौधों और भी कई प्रकार के फलों से सज जाता है।सुथनी और कमरंगा जैसे फल भी होते है इसकी जानकारी छठ के बाज़ार जाकर पता चलता है।
दूसरे दिन यानि खरना के दिन व्रती महिलाएँ दिनभर निर्जल व्रत करके शाम को पूरी पवित्रता से गाय के दूध में चावल डाल कर खीर बनाती है कुछ लोग मिसरी तो कुछ गुड़ का प्रयोग करते है। शाम को पूजाघर में सूर्य भगवान के नाम का प्रसाद अर्पित कर,फिर खीर खुद खाती है फिर बाकी सभी लोग पूरी श्रद्धाभक्ति से प्रसाद ग्रहण करते है।
तीसरे दिन सुबह से ही सब सूप,दौरा,डाला और बाजा़र से लाये गये फलों को पवित्र जल से धोया जाता है।फिर नयी ईंट जोड़कर चूल्हा बनाया जाता है आम की लकड़ी की धीमी आँच पर गेहूँ के आटे और गुड़ को मिलकार प्रसाद बनाया जाता है जिसे 'ठेकुआ', 'टिकरी' कहते है।चावल को पीसकर गुड़ मिलाकर कसार बनाया जाता है,भक्तिमय सुरीले पारंपरिक गीतो को गाकर घर परिवार के हर सदस्य की खुशहाली,समृद्धि की प्रार्थना की जाती है। हँसते खिलखिलाते गुनगुनाते असीम श्रद्धा से बने प्रसाद अमृत तुल्य होते है।फिर,ढलते दोपहर के बाद सूप सजा कर सिर पर रख नंगे पाँव नदी,तालाब के किनारों पर इकट्ठे होते है सभी, व्रती महिलाओं के साथ अन्य सभी लोग डूबते सूरज को अरग देने।सुंदर मधुर गीत कानों में पिघलकर आत्मा को शुद्ध कर जाते है।नये-नये कपड़े पहनकर उत्साह और आनंद से भरे-पूरे,मुस्कुराते अपनेपन से सरोबार हर हाथ एक दूसरे के प्रति सम्मान और सहयोग की भावना से भरे जीवन के प्रति मोह बढ़ा देते है। शारदा सिन्हा के गीत मानो मंत्र सरीखे वातावरण को पूर्ण भक्तिमय बना देते है।
चौथे दिन सूरज निकलने के पहले ही सभी घाट पहुँच जाते है।उगते सूरज का इंतज़ार करते,भक्ति-भाव से सूर्य के आगे नतमस्तक होकर अपने अपनों लिए झोली भर खुशियाँ माँगते है।उदित सूर्य को अर्ध्य अर्पित कर व्रती अपना व्रत पूरा करती है।
प्रकृति को मानव से जोड़ने का यह महापर्व है जो कि आधुनिक जीवनशैली में समाजिक सरोकारों में एक दूसरे से दूर होते परिवारों को एक करने का काम करता है।यह होली,दशहरा की तरह घर के भीतर सिमटकर मनाया जाने वाला त्योहार नहीं,बल्कि एकाकी होती दुनिया के दौर में सामाजिक सहयोगात्मक रवैया और सामूहिकता स्थापित कर जड़ों को सींचने का प्रयास करता एक अमृतमय घट है।आज यह त्योहार सिर्फ बिहार या उत्तरप्रदेश ही नहीं अपितु इसका स्वरूप व्यापक हो गया है यह देश के अनेक हिस्सों में मनाया जाने लगा है।हिंदू के अलावा अन्य धर्माम्बलंबियों को इस त्योहार को करते देखने का सुखद सौभाग्य मुझे प्राप्त हुआ है।मैं स्वयं को भाग्यशाली मानती हूँ कि मुझे परंपरा में ऐसा अनूठा त्योहार मिला है।
#श्वेता🍁
*चित्र साभार गूगल*
व्रती महिलाओं को नमन
ReplyDeleteसादर
अति आभार आपका आदरणीय सर।
Deleteसादर।
वाह! श्वेताजी, अद्भुत लेख। हम भी सोच रहे थे लेकिन इतना अच्छा नहीं लिख पाते। बहुत बढ़िया। छठी मईया का आशीष सबको मिले।
ReplyDeleteजी,विश्वमोहन जी आपका बड़प्पन है जो ऐसा कह रहे।मुझे लेख लिखने की प्रेरणा आपके द्वारा लिखित सुंदर लेखों से ही मिली है।कृपया अपना आशीष बनाये रखे सदैव और कोई भी त्रुटि दिखे तो मार्गदर्शन अवश्य करे।
Deleteआभारी है आपके तहेदिल से
सादर
अति आभार आपका दी:))मेरी रचना को मान देने के लिए।तहेदिल से शुक्रिया आपका।
ReplyDeleteVery nice
ReplyDeleteजी आभार आपका।
Deleteव्रती महिलाओं को नमन
ReplyDeleteसादर
जी आभार आपका।
Deleteछठ-व्रत की धूम बिहार ,झारखण्ड ,पूर्वी उत्तर प्रदेश और दिल्ली में बड़े उल्लास के साथ दिखाई देती है। आज आपके लेख से जानकारी बढ़ी। आपने इस व्रत की महिमा ,ऐतिहासिक ,धार्मिक एवं सामाजिक पक्ष को प्रभावी ढंग से विवेचित किया है। आपके लेख भी नयापन लेकर सामने आ रहे हैं। सदैव स्वागत। लिखते रहिये ताकि सुधिजनों को सटीक,विचारणीय और प्रामाणिक जानकारी मिलती रहे।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका रवींद्र जी।
Deleteआदरणीय श्वेता बहन -- छठ पर्व पर ये अद्भुत लेख इस पर्व के विहगम उल्लास को प्रस्तुत कर रहा है | भले ही मुझे इस बारे में ज्यादा जानकारी नहीं थी पर जानती हूँ ये पर्व बिहार और देश के अन्य कई राज्यों में बड़ी ही श्रद्धा और आस्था का प्रतीक है | व्रती महिलाएं नमन की अधिकारी हैं क्योकि सुनती हूँ ये व्रत निर्जल रहकर किया जाता है| आपके लेख के माध्यम से बहुत सी नयी बातें जानी | आपको सूर्य उपासना के इस पावन पर्व पर मेरी हार्दिक मंगल कामनाएं मिले | आप सपरिवार सानंद रहें |
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका प्रिय रेणु जी।सस्नेह।
Deleteबहुत सुंदर रंग बिरंगा सा लेख है आपका । पढ़ा तो अंत तक जाकर ही रुकी । छठ पर्व के बारे में बहुत कुछ जानती तो हूँ, चूँकि मेरे आसपास कई परिवार बिहार, उत्तरप्रदेश राज्यों के हैं जो इसे धूमधाम से मनाते हैं । पास ही नदी है, वहाँ मेले का सा दृश्य होता है । जो व्रती नहीं होते वे और अन्य प्रांतों के लोग भी यह रंग बिरंगा सुंदर समां देखने इकट्ठा होते हैं । आपके लेख से और भी अधिक जानकारी मिली । सरल, सहज, सुंदर शैली में लेख लिख रही हैं आप । रोहिंग्या मुसलमानों की समस्या वाला आपका लेख भी मैंने पढ़ा है । सस्नेह, शुभकामनाओं के साथ....
ReplyDeleteजी मीना जी,आपकी प्रतिक्रिया की सदैव प्रतीक्षा रहती है।कृपया नेह बनाये रखे।हृदय से अति आभार।
Deleteसादर।
बहुत बढ़िया।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सर।
Deleteबहुत सुंदर अद्भुत तरीके से वर्णन किया हैं आपने छठ पर्व का स्वेता जी! बधाई...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ज्योति जी।सस्नेह।
Deleteछठ पर्व के शुभ अवसर पर हार्दिक शुभ कामनाएँ श्वेता जी .बहुत सुन्दर और सार्थक लेख.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी।
Deleteलोकआस्था के महापर्व छठ पर आपका लेख अनुकरणीय है | छठ पर्व की हार्दिक बधाई व् शुभकामनाएं स्वेता जी ... वंदना बाजपेयी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका वंदना जी।
Deleteछठपर्व के बारे में आधी अधूरी जानकारी थी ,आज आपका लेख पढकर इस महत्वपूर्ण पर्व की जानकारी मिली.... सूर्य उपासना के इस पर्व की आपको भी ढेर सारी शुभकामनाएं....
ReplyDeleteजानकारी share करने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद.....
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी।सस्नेह।
Deleteछठ मैया की जय
ReplyDeleteजी बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी।
Deleteबहुत सुंदर और सार्थक लेख। आपको छट पर्व की ह्रदय से शुभकामनाएं।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका अमित जी।
Deleteछठ के पर्व को विस्तृत जानकारी और सार्थक आलेख ... बहुत बधाई इस पावन पर्व की ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका नासवा जी।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
ReplyDeleteजिन दिनों सब औपचारिक था , कितना स्नेह था सबमें | सुंदर लेख
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