Pages

Saturday, 28 October 2017

तुम बिन.....


चित्र साभार गूगल


तुम बिन बड़ी उदासी है।
नयन दरश को प्यासी है।।
पवन झकोरे सीले-सीले,
रूत ग़मगीन ज़रा-सी है।

दरवाज़ें है बंद लबों के,
दर्द भला कम हो तो कैसे?
मौन सिसकता साँसों में
सुर गीत पिरोये मन कैसे
 छू अधरों को कहते अश्रु
पीड़ा नमकीन ज़रा-सी है।

रात अमावस घुटन भरी,
घनघोर अंधेरा छाया है।
जुगनू तारे सब रुठ गये
खग व्याकुल घबराया है
बाती कहती है सिहर-सिहर
भोर में बाकी देर ज़रा-सी है।

बिना तुम्हारे सुरभित न हो,
पुष्प पलाश सा लगता है।
बिना रंग ज्यों फाग सजे
ना उल्लास ही जगता है
छू लो न भर दो गंध मधुर
कली गंधविहीन ज़रा-सी है।

सागर उफ़ने नित निर्विकार
जीवन का अमृत सार लिये
खारी लहरें उछली मचली
तट सूना रेत का भार लिये
तुम अंजुरी भर नीर बनो
नेह प्यासी मीन ज़रा-सी है।
  
     #श्वेता सिन्हा

  

  

41 comments:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 29 अक्टूबर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर।

      Delete
  2. सुंदर भावपूर्ण रचना श्वेता जी।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।

      Delete
  3. बहुत सुंदर वर्णन अवसाद का
    हर रंग मे लिख सकती हो आप बहुत सुंदर बिटिया स्वेता सिन्हा

    ReplyDelete
    Replies
    1. सादर प्रणाम चाचाजी,
      आपका स्वागत है सदैव।आपका आशीष मिला बहुत प्रसन्नता हुई।

      Delete
  4. बहुत उम्दा
    मन की गहराई से निकली रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।

      Delete
  5. श्वेता जी आपकी नई रचना बड़े कमाल की है। "ज़रा-सी" तुकांत शब्दांश के साथ आपने भावों का बड़ा ही सुंदर और मोहक तना-बाना बुना है। ज़रा-सी बात में ही कभी-कभी निचोड़ सामने आ जाता है। आपने भी अलग-अलग स्थितियों को कम से कम शब्दों में मनोभावों को क़रीने से सहेजकर कलात्मक अभिव्यक्ति बना दिया है। बधाई एवं शुभकामनाऐं।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत बहुत आभार आपका रवींद्र जी।आपकी विश्लषणात्मक प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी।तहेदिल से शुक्रिया आपका।आपकी शुभकामनाएँ सदैव अपेक्षित है।

      Delete
  6. तुम बिन बड़ी उदासी है।
    नयन दरश को प्यासी है।।
    पवन झकोरे सीले-सीले,
    रूत ग़मगीन ज़रा-सी है।

    बहुत ही मधुर। मधुरम। मधुरतम। wahhhhh। भरपूर आनंद आया। अंतर्मन से निकली एक सच्ची रचना।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका अमित जी।आपको अच्छी लगी तो ठीक बनी होगी।सदैव आभारी है आपके।

      Delete
  7. सच मे बिन उनके जीवन कुछ भी नहीं है
    बिन देखे एक पल चैन भी नही है.....बहुत प्यारी रचना है तुम बिन बड़ी उदासी हैं
    .....बहुत प्यार भरा है आपकी कविता में स्वेता जी

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत बहुत आभार आपका शकुंतला जी।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।

      Delete
  8. स्वेता, सच कहा बिन प्रियतम के किसी बात में, किसी भी चीज में मजा नही आता। कितनी भी बड़ी खुशी बिन प्रियतम के अधूरी ही लगती हैं। इन्ही भावों को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है तुमने। बहुत सुंदर।

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत शुक्रिया आपका ज्योति जी।तहेदिल से शुक्रिया आपका बहुत सारा।

      Delete
  9. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सर।

      Delete
  10. बहुत सुंदर भवपूर्ण रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ऋतु जी।तहेदिल से शुक्रिया आपका।

      Delete
  11. खूबसूरत अभिव्यक्ति ! बिछोह की व्यथा का स्पर्शी चित्रण!

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी तहेदिल से शुक्रिया मीना जी।

      Delete
  12. बहुत प्यारी रचना

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका नीतू जी।

      Delete
  13. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका गगन जी। तहेदिल से शुक्रिया आपका।

      Delete
  14. बहुत खूबसूरत.

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका मीना जी। तहेदिल से शुक्रिया आपका।

      Delete
  15. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।

      Delete
  16. Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका ध्रुव जी।

      Delete
  17. उफने सागर निर्विकार हो
    तन को भिगोकर जाता है
    अंजुरी भर तुम नीर बनो
    नेह प्यासी मीन जरा सी है।
    वाह!!!!
    लाजवाब अभिव्यक्ति...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।

      Delete
  18. मनन के भाव लिए ... कुछ कुछ उदासी के आवरण तले लिखी रचना ... पर बहुत ही कोमल शब्दों से बुनी ... दिल को छूते हुए भाव लिए ... गेयता लिए लाजवाब ...

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका नासवा जी।रचना का मर्म समझने के लिए अति आभार आपका।

      Delete

  19. उफने सागर निर्विकार हो,
    तन को भिगो कर जाता है।
    अंजुरी भर तुम नीर बनो,
    नेह प्यासी मीन ज़रा-सी है--

    कितने सुंदर भाव पिरोये हैं आपने श्वेता बहन | विरह को भी मनमोहक बना दिया आपने | सस्नेह हार्दिक बधाई आपको |

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत आभार आपका रेणु जी।तहेदिल से शुक्रिया आपका।

      Delete
  20. बहुत बहुत आभार आपका राकेश जी।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।

    ReplyDelete
  21. बहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया ! बहुत खूब ।

    ReplyDelete
  22. बिना तुम्हारे सुरभित न हो,
    पुष्प पलाश सा लगता है।
    बिना रंग ज्यों फाग सजे
    ना उल्लास ही जगता है
    छू लो न भर दो गंध मधुर
    कली गंधविहीन ज़रा-सी है।
    कहाँ गयी वो श्वेता ? ढूंढ रही हूँ उसे पुराने दिनों में झांककर !

    ReplyDelete

आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।