चित्र साभार गूगल
तुम बिन बड़ी उदासी है।
नयन दरश को प्यासी है।।
पवन झकोरे सीले-सीले,
रूत ग़मगीन ज़रा-सी है।
नयन दरश को प्यासी है।।
पवन झकोरे सीले-सीले,
रूत ग़मगीन ज़रा-सी है।
दरवाज़ें है बंद लबों के,
दर्द भला कम हो तो कैसे?
मौन सिसकता साँसों में
सुर गीत पिरोये मन कैसे
छू अधरों को कहते अश्रु
पीड़ा नमकीन ज़रा-सी है।
दर्द भला कम हो तो कैसे?
मौन सिसकता साँसों में
सुर गीत पिरोये मन कैसे
छू अधरों को कहते अश्रु
पीड़ा नमकीन ज़रा-सी है।
रात अमावस घुटन भरी,
घनघोर अंधेरा छाया है।
जुगनू तारे सब रुठ गये
खग व्याकुल घबराया है
बाती कहती है सिहर-सिहर
भोर में बाकी देर ज़रा-सी है।
घनघोर अंधेरा छाया है।
जुगनू तारे सब रुठ गये
खग व्याकुल घबराया है
बाती कहती है सिहर-सिहर
भोर में बाकी देर ज़रा-सी है।
बिना तुम्हारे सुरभित न हो,
पुष्प पलाश सा लगता है।
बिना रंग ज्यों फाग सजे
ना उल्लास ही जगता है
छू लो न भर दो गंध मधुर
कली गंधविहीन ज़रा-सी है।
पुष्प पलाश सा लगता है।
बिना रंग ज्यों फाग सजे
ना उल्लास ही जगता है
छू लो न भर दो गंध मधुर
कली गंधविहीन ज़रा-सी है।
सागर उफ़ने नित निर्विकार
जीवन का अमृत सार लिये
खारी लहरें उछली मचली
तट सूना रेत का भार लिये
तुम अंजुरी भर नीर बनो
जीवन का अमृत सार लिये
खारी लहरें उछली मचली
तट सूना रेत का भार लिये
तुम अंजुरी भर नीर बनो
नेह प्यासी मीन ज़रा-सी है।
#श्वेता सिन्हा
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 29 अक्टूबर 2017 को साझा की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय सर।
Deleteसुंदर भावपूर्ण रचना श्वेता जी।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
Deleteबहुत सुंदर वर्णन अवसाद का
ReplyDeleteहर रंग मे लिख सकती हो आप बहुत सुंदर बिटिया स्वेता सिन्हा
सादर प्रणाम चाचाजी,
Deleteआपका स्वागत है सदैव।आपका आशीष मिला बहुत प्रसन्नता हुई।
बहुत उम्दा
ReplyDeleteमन की गहराई से निकली रचना
बहुत बहुत आभार आपका लोकेश जी।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteश्वेता जी आपकी नई रचना बड़े कमाल की है। "ज़रा-सी" तुकांत शब्दांश के साथ आपने भावों का बड़ा ही सुंदर और मोहक तना-बाना बुना है। ज़रा-सी बात में ही कभी-कभी निचोड़ सामने आ जाता है। आपने भी अलग-अलग स्थितियों को कम से कम शब्दों में मनोभावों को क़रीने से सहेजकर कलात्मक अभिव्यक्ति बना दिया है। बधाई एवं शुभकामनाऐं।
ReplyDeleteबहुत बहुत बहुत आभार आपका रवींद्र जी।आपकी विश्लषणात्मक प्रतिक्रिया बहुत अच्छी लगी।तहेदिल से शुक्रिया आपका।आपकी शुभकामनाएँ सदैव अपेक्षित है।
Deleteतुम बिन बड़ी उदासी है।
ReplyDeleteनयन दरश को प्यासी है।।
पवन झकोरे सीले-सीले,
रूत ग़मगीन ज़रा-सी है।
बहुत ही मधुर। मधुरम। मधुरतम। wahhhhh। भरपूर आनंद आया। अंतर्मन से निकली एक सच्ची रचना।
बहुत बहुत आभार आपका अमित जी।आपको अच्छी लगी तो ठीक बनी होगी।सदैव आभारी है आपके।
Deleteसच मे बिन उनके जीवन कुछ भी नहीं है
ReplyDeleteबिन देखे एक पल चैन भी नही है.....बहुत प्यारी रचना है तुम बिन बड़ी उदासी हैं
.....बहुत प्यार भरा है आपकी कविता में स्वेता जी
बहुत बहुत बहुत आभार आपका शकुंतला जी।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
Deleteस्वेता, सच कहा बिन प्रियतम के किसी बात में, किसी भी चीज में मजा नही आता। कितनी भी बड़ी खुशी बिन प्रियतम के अधूरी ही लगती हैं। इन्ही भावों को बहुत ही खूबसूरती से व्यक्त किया है तुमने। बहुत सुंदर।
ReplyDeleteबहुत बहुत शुक्रिया आपका ज्योति जी।तहेदिल से शुक्रिया आपका बहुत सारा।
Deleteसुन्दर।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका सर।
Deleteबहुत सुंदर भवपूर्ण रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ऋतु जी।तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteखूबसूरत अभिव्यक्ति ! बिछोह की व्यथा का स्पर्शी चित्रण!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी तहेदिल से शुक्रिया मीना जी।
Deleteबहुत प्यारी रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका नीतू जी।
Deleteकोमल, प्यारी सी रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका गगन जी। तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत खूबसूरत.
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका मीना जी। तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteसुन्दर रचना।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका आदरणीय।
Deleteबहुत खूबसूरत!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका ध्रुव जी।
Deleteउफने सागर निर्विकार हो
ReplyDeleteतन को भिगोकर जाता है
अंजुरी भर तुम नीर बनो
नेह प्यासी मीन जरा सी है।
वाह!!!!
लाजवाब अभिव्यक्ति...
बहुत बहुत आभार आपका सुधा जी।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
Deleteमनन के भाव लिए ... कुछ कुछ उदासी के आवरण तले लिखी रचना ... पर बहुत ही कोमल शब्दों से बुनी ... दिल को छूते हुए भाव लिए ... गेयता लिए लाजवाब ...
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका नासवा जी।रचना का मर्म समझने के लिए अति आभार आपका।
Delete
ReplyDeleteउफने सागर निर्विकार हो,
तन को भिगो कर जाता है।
अंजुरी भर तुम नीर बनो,
नेह प्यासी मीन ज़रा-सी है--
कितने सुंदर भाव पिरोये हैं आपने श्वेता बहन | विरह को भी मनमोहक बना दिया आपने | सस्नेह हार्दिक बधाई आपको |
बहुत बहुत आभार आपका रेणु जी।तहेदिल से शुक्रिया आपका।
Deleteबहुत बहुत आभार आपका राकेश जी।तहेदिल से शुक्रिया बहुत सारा।
ReplyDeleteबहुत सुंदर प्रस्तुति आदरणीया ! बहुत खूब ।
ReplyDeleteबिना तुम्हारे सुरभित न हो,
ReplyDeleteपुष्प पलाश सा लगता है।
बिना रंग ज्यों फाग सजे
ना उल्लास ही जगता है
छू लो न भर दो गंध मधुर
कली गंधविहीन ज़रा-सी है।
कहाँ गयी वो श्वेता ? ढूंढ रही हूँ उसे पुराने दिनों में झांककर !