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Sunday 10 December 2017

ख़्यालों में कोई


शाख़ से टूटने के पहले
एक पत्ता मचल रहा है।
उड़ता हुआ थका वक्त,
आज फिर से बदल रहा है।

गुजरते सर्द लम्हों की
ख़ामोश शिकायत पर
दिन ने कुछ धूप जमा की है,
साँझ की नम आँगन में
चाँदनी की शामियाने तले
दर्द के शरारों का दखल रहा है।

सहेजकर रखे याद के खज़ानें में
एक-एक कीमती नगीना 
गुलाबी रुमाल में बाँधकर
पिटारे में जो रक्खी थी,
उन महकते ख़तों से निकलकर
ख़्यालों में कोई मचल रहा है।

बड़ी देर से थामकर रखी है
कच्ची सी डोर उम्मीद की
कुछ खोने-पाने के डर से परे
अभिमंत्रित पूजा की ऋचाओं सी,
हृदय के महीन तारों से लिपटा
प्रेम ही प्रेम पवित्र सकल रहा है।

       #श्वेता🍁

16 comments:

  1. शुभ संध्या सखी
    बेहतरीन कविता
    सद्य प्रसवित
    साधुवाद
    सादर

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  2. सहेजकर रखे याद के खज़ानें में
    एक-एक कीमती नगीना
    गुलाबी रुमाल में बाँधकर
    पिटारे में जो रक्खी थी,
    उन महकते ख़तों से निकलकर
    ख़्यालों में कोई मचल रहा है।

    बहुत ही खूबसूरत अशआर

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  3. शाख़ से टूटने के पहले, एक पत्ता मचल रहा है।
    उड़ता हुआ थका वक्त,आज फिर से बदल रहा है...
    बहुत ही खूबसूरत रचना श्वेता जी...

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  4. मन को छू गई‎ आपकी रचना‎ बहुत सुन्दर भावों को दर्शाती अत्यन्त सुन्दर‎ रचना‎ .

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  5. भावों की बेहतरीन अभिव्यक्ति.

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  6. बहुत सुन्दर
    मन को छू गई‎ आपकी रचना

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  7. Bhaut acha likha h ap na👍👍

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  8. "गुजरते सर्द लम्हों की
    ख़ामोश शिकायत पर
    दिन ने कुछ धूप जमा की है"

    वाह! बेहद ही खूबसूरत कविता। एकदम सहज एवं सरल।
    बहुत दिनों बाद कोई कविता पढकर मन खुश हुआ।
    बहुत बहुत धन्यवाद, श्वेता जी।

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  9. वाह ! क्या बात है ! बहुत ही खूबसूरत रचना की प्रस्तुति । लाजवाब !! बहुत खूब आदरणीया ।

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  10. वाह!!श्वेता जी ,बहुत सुंदर प्रस्तुति।

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  11. बेहतरीन ...प्रिय श्वेता ...👌👌👌
    जज़्बातो का झंझावात सा
    दिल को मथता जाये
    कच्ची डोर बँधी ऊम्मीदै
    फिर फिर कसके जाये !

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  12. यादों के नगीने सहेजे राहते हैं मन में कोने में ...
    बड़ी पूँजी होते हैं ये ...

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  13. बहुत सुंदर शब्दावली से सजी ऐसी रचना, जिसे बार बार पढ़ने को मन चाहे....

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  14. बहुत खूब......

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  15. बेहतरीन अभिव्यक्ति

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  16. कुछ खोने-पाने के डर से परे
    अभिमंत्रित पूजा की ऋचाओं सी,
    हृदय के महीन तारों से लिपटा
    प्रेम ही प्रेम पवित्र सकल रहा है!!!!!!
    !बहुत ही सुंदर भाव प्रिय श्वेता | खोने पाने से परे होने में ही प्रेम की सार्थकता है | बहुत शुभकामनायें और मेरा प्या

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।