क्यों ख़्यालों से कभी
ख़्याल तुम्हारा जुदा नहीं,
बिन छुये एहसास जगाते हो
मौजूदगी तेरी लम्हों में,
पाक बंदगी में दिल की
तुम ही हो ख़ुदा नहीं।
ज़िस्म के दायरे में सिमटी
ख़्वाहिश तड़पकर रूलाती है,
तेरी ख़ुशियों के सज़दे में
काँटों को चूमकर भी लब
सदा ही मुसकुराते हैं
तन्हाई में फैले हो तुम ही तुम
क्यों तुम्हारी आती सदा नहीं।
बचपना दिल का छूटता नहीं
तेरी बे-रुख़ी की बातों पर भी
दिल तुझसे रूठता नहीं
क़तरा-क़तरा घुलकर इश्क़
सुरुर बना छा गया
हरेक शय में तस्वीर तेरी
उफ़!,ये क्या हुआ पता नहीं....!
#श्वेता🍁
बचपना दिल का छूटता नहीं
ReplyDeleteतेरी बेरुखी की बातों पर भी
दिल तुमसे रूठता नहीं
कतरा-कतरा घुलकर इश्क
सुरुर बना छा गया
हरेक शय में तस्वीर तेरी
ऊफ,ये क्या हुआ पता नहीं।
बहुत सुंदर...
दिल को छू जाने वाली अभिव्यक्ति
बहुत बहुत अभार तहेदिल से शुक्रिया आपका लोकेश जी।
Deleteशब्द शब्द प्रेम बद्ध. अति सुंदर रचना श्वेता जी
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार सुधा जी,तहेदिल से शुक्रिया आपका बहुत सारा।
Deleteसुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार आपका शुभा जी।तहेदिल से शुक्रिया खूब सारा।
Deleteप्रेम की निर्मल,स्वच्छ अभिव्यक्ति... सुंदर !!!!
ReplyDeleteबहुत बहुत आभार तहेदिल से शुक्रिया आपका मीना जी। सस्नेह अभिनंदन।
Deleteवाह ! कितना सुंदर भाव प्रवाह ! शब्दों का चयन और सजावट बेहद खूबसूरत ! लाजवाब प्रस्तुति !! बहुत खूब आदरणीया ।
ReplyDeleteबहुत सुंंदर भाव प्रवीण प्यारी रचना..
ReplyDeleteखूबसूरत रचना...कितनी कोमल भावनाएं लिए प्रेयसी मन के उद्गारों को प्रेमी के समक्ष रख रही है..हर एक बात मानो उसकी कह रही हो प्रिय प्रिय और सिर्फ प्रिय... आपकी लेखनशैली इस विषय में अद्भुत प्रभाव छोड़ती है।लिखते रहे सदैव शुभ कामनाएं।
ReplyDeleteशुभ प्रभात....
ReplyDeleteप्यारी सी कविता
अलग भाव
ख्याल भी अलग
सादर
बचपना दिल का छूटता नहीं
ReplyDeleteतेरी बेरुखी की बातों पर भी
दिल तुमसे रूठता नहीं
कतरा-कतरा घुलकर इश्क
सुरुर बना छा गया
हरेक शय में तस्वीर तेरी
ऊफ,ये क्या हुआ पता नहीं।
वाह वाह वाह।।।।।। उफ़्फ़ ये क्या हुआ पता नहीं। कितना पाकीजा ख़्याल है। शिकायत है भी और नहीं भी। बस दिल बेसाख़्ता मोहब्बत किये जा रहा है। अपेक्षा और उपेक्षा से परे।
गोया-
कितनी मासूम होती है
ये दिल की धड़कनें
कोई सुने ना सुने...
ये खामोश नही रहतीं...!
श्रृंगार से परिपूर्ण मनोहारी रचना .
ReplyDeleteअति सुंदर रचना श्वेता जी
ReplyDeleteबहुत ही लाजवाब रचना.....
ReplyDeleteजिस्म के दायरे में सिमटी
ख्वाहिश तड़पकर रुलाती है......
वाह!!!!
अद्भुत भाव....
समर्पण की गरिमा से भरी रचना अपने आप में भावनाओं का वृहद् संसार समेटे हुए है --ये पंक्तियाँ खास हैं --
ReplyDeleteबचपना दिल का छूटता नहीं
तेरी बे-रुख़ी की बातों पर भी
दिल तुझसे रूठता नहीं
क़तरा-क़तरा घुलकर इश्क़
सुरुर बना छा गया
हरेक शय में तस्वीर तेरी
उफ़!,ये क्या हुआ पता नहीं--
बहुत खूब प्रिय श्वेता जी ---सस्नेह --