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Monday, 10 June 2019

तोड़कर तिमिर बंध

चीर सीना तम का
सूर्य दिपदिपा रहा
तोड़कर तिमिर बंध
भोर मुस्कुरा रहा

उठो और फेंक दो तुम
जाल जो अलसा रहा
जो मिला जीवन से उसको
मन से तुम स्वीकार लो
धुँध आँखों से हटा लो
मन से सारे भ्रम मिटा लो
ज़िंदगी उर्वर जमीं है
कर्मों का श्रृंगार कर लो

जो न मिला न शोक कर
जो मिल रहा उपभोग कर
तू भागे परछाई के पीछे
पाँव यह दलदल में खींचे
न बने मन काँच का घट
ठेस लग दरके हृदय पट
अपने जीवन की कथा के
मुख्य तुम किरदार हो

बन रहे हो एक कहानी
कर्म तेरे अपनी ज़ुबानी
बोलते असरदार हो
बस लेखनी को धार कर  
लड़कर समर है जीतना
हर बखत क्या झींकना
विध्न बाधा क्या बिगाडे
तूफां में अडिग रहे ठाडे

निराशा घुटन की यातना
ये बंध कठिन सब काटना
चढ़कर इरादों के पहाड़
खोल लो नभ के किवाड़
खुशियाँ मिलेंगी बाँह भर
भर अंजुरी स्वीकार कर लो

#श्वेता सिन्हा

23 comments:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2019) को "राह दिखाये कौन" (चर्चा अंक- 3363) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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    1. जी सर बहुत आभारी हूँ शुक्रिया।

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  2. सुन्दर प्रेरणास्पद प्रस्तुति

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    1. आभारी हूँ रितु जी शुक्रिया।

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  3. निराशा घुटन की यातना
    ये बंध कठिन सब काटना
    चढ़कर इरादों के पहाड़
    खोल लो नभ के किवाड़
    खुशियाँ मिलेंगी बाँह भर
    भर अंजुरी स्वीकार कर लो... बहुत सुंदर रचना श्वेता जी

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    1. आभारी हूँ अनुराधा जी शुक्रिया।

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  4. खुशियाँ मिलेंगी बाँह भर
    भर अंजुरी स्वीकार कर लो ...रचना की सार-पंक्तियाँ, ओजपूर्ण रचना ...

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    1. बहुत आभारी हूँ जी..शुक्रिया मन से।

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  5. जोश जगाती रचना..

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    1. जी बहुत अभारी हूँ अनीता जी बहुत शुक्रिया।

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  6. चढ़ कर इरादों के पहाड़
    खोल लो नभ के किवाड़ ...वाह!!श्वेता ,हौसला बुलंद करती अप्रतिम रचना ।

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    1. जी आभारी हूँ दी.बहुत शुक्रिया।

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  7. खोल लो नभ के किवाड़
    खुशियाँ मिलेंगी बाँह भर
    भर अंजुरी स्वीकार कर लो
    बहुत सुंदर भाव ....

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    1. जी आभारी हूँ कामिनी जी,शुक्रिया।

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  8. श्वेता बहुत सुन्दर सृजन... ऊषा की प्रथम किरण सी आशा का संचार करती अत्यंत सुन्दर रचना ।

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    1. जी आभारी हूँ दी ..शुक्रिया।

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  9. आभारी हूँ शिवम् जी..बहुत शुक्रिया।

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  10. जी दी आभारी हूँ शुक्रिया।

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  11. बहुत सुन्दर रचना प्रिय श्वेता दी जी
    सादर

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  12. सार्थक, जीवत और आगे बढ़ने का निरंतर सन्देश लिए आशापूर्ण रचना ...
    कर्म को अग्रसर करते भाव ... उत्तम ...

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  13. खोल लो नभ के किवाड़
    खुशियाँ मिलेंगी बाँह भर
    भर अंजुरी स्वीकार कर लो... बहुत सुंदर रचना श्वेता जी

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आपकी लिखी प्रतिक्रियाएँ मेरी लेखनी की ऊर्जा है।
शुक्रिया।