चीर सीना तम का
सूर्य दिपदिपा रहा
तोड़कर तिमिर बंध
भोर मुस्कुरा रहा
उठो और फेंक दो तुम
जाल जो अलसा रहा
जो मिला जीवन से उसको
मन से तुम स्वीकार लो
धुँध आँखों से हटा लो
मन से सारे भ्रम मिटा लो
ज़िंदगी उर्वर जमीं है
कर्मों का श्रृंगार कर लो
जो न मिला न शोक कर
जो मिल रहा उपभोग कर
तू भागे परछाई के पीछे
पाँव यह दलदल में खींचे
न बने मन काँच का घट
ठेस लग दरके हृदय पट
अपने जीवन की कथा के
मुख्य तुम किरदार हो
बन रहे हो एक कहानी
कर्म तेरे अपनी ज़ुबानी
बोलते असरदार हो
बस लेखनी को धार कर
लड़कर समर है जीतना
हर बखत क्या झींकना
विध्न बाधा क्या बिगाडे
तूफां में अडिग रहे ठाडे
निराशा घुटन की यातना
ये बंध कठिन सब काटना
चढ़कर इरादों के पहाड़
खोल लो नभ के किवाड़
खुशियाँ मिलेंगी बाँह भर
भर अंजुरी स्वीकार कर लो
#श्वेता सिन्हा
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (11-06-2019) को "राह दिखाये कौन" (चर्चा अंक- 3363) पर भी होगी।
ReplyDelete--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी सर बहुत आभारी हूँ शुक्रिया।
Deleteसुन्दर प्रेरणास्पद प्रस्तुति
ReplyDeleteआभारी हूँ रितु जी शुक्रिया।
Deleteनिराशा घुटन की यातना
ReplyDeleteये बंध कठिन सब काटना
चढ़कर इरादों के पहाड़
खोल लो नभ के किवाड़
खुशियाँ मिलेंगी बाँह भर
भर अंजुरी स्वीकार कर लो... बहुत सुंदर रचना श्वेता जी
आभारी हूँ अनुराधा जी शुक्रिया।
Deleteखुशियाँ मिलेंगी बाँह भर
ReplyDeleteभर अंजुरी स्वीकार कर लो ...रचना की सार-पंक्तियाँ, ओजपूर्ण रचना ...
बहुत आभारी हूँ जी..शुक्रिया मन से।
Deleteजोश जगाती रचना..
ReplyDeleteजी बहुत अभारी हूँ अनीता जी बहुत शुक्रिया।
Deleteचढ़ कर इरादों के पहाड़
ReplyDeleteखोल लो नभ के किवाड़ ...वाह!!श्वेता ,हौसला बुलंद करती अप्रतिम रचना ।
जी आभारी हूँ दी.बहुत शुक्रिया।
Deleteखोल लो नभ के किवाड़
ReplyDeleteखुशियाँ मिलेंगी बाँह भर
भर अंजुरी स्वीकार कर लो
बहुत सुंदर भाव ....
जी आभारी हूँ कामिनी जी,शुक्रिया।
Deleteश्वेता बहुत सुन्दर सृजन... ऊषा की प्रथम किरण सी आशा का संचार करती अत्यंत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteजी आभारी हूँ दी ..शुक्रिया।
Deleteआभारी हूँ शिवम् जी..बहुत शुक्रिया।
ReplyDeleteजी दी आभारी हूँ शुक्रिया।
ReplyDeleteसार्थक रचना
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना प्रिय श्वेता दी जी
ReplyDeleteसादर
सार्थक, जीवत और आगे बढ़ने का निरंतर सन्देश लिए आशापूर्ण रचना ...
ReplyDeleteकर्म को अग्रसर करते भाव ... उत्तम ...
बेहतरीन रचना...
ReplyDeleteखोल लो नभ के किवाड़
ReplyDeleteखुशियाँ मिलेंगी बाँह भर
भर अंजुरी स्वीकार कर लो... बहुत सुंदर रचना श्वेता जी