Showing posts with label तोड़कर तिमिर बंध....छंदमुक्त कविता. Show all posts
Showing posts with label तोड़कर तिमिर बंध....छंदमुक्त कविता. Show all posts

Monday, 10 June 2019

तोड़कर तिमिर बंध

चीर सीना तम का
सूर्य दिपदिपा रहा
तोड़कर तिमिर बंध
भोर मुस्कुरा रहा

उठो और फेंक दो तुम
जाल जो अलसा रहा
जो मिला जीवन से उसको
मन से तुम स्वीकार लो
धुँध आँखों से हटा लो
मन से सारे भ्रम मिटा लो
ज़िंदगी उर्वर जमीं है
कर्मों का श्रृंगार कर लो

जो न मिला न शोक कर
जो मिल रहा उपभोग कर
तू भागे परछाई के पीछे
पाँव यह दलदल में खींचे
न बने मन काँच का घट
ठेस लग दरके हृदय पट
अपने जीवन की कथा के
मुख्य तुम किरदार हो

बन रहे हो एक कहानी
कर्म तेरे अपनी ज़ुबानी
बोलते असरदार हो
बस लेखनी को धार कर  
लड़कर समर है जीतना
हर बखत क्या झींकना
विध्न बाधा क्या बिगाडे
तूफां में अडिग रहे ठाडे

निराशा घुटन की यातना
ये बंध कठिन सब काटना
चढ़कर इरादों के पहाड़
खोल लो नभ के किवाड़
खुशियाँ मिलेंगी बाँह भर
भर अंजुरी स्वीकार कर लो

#श्वेता सिन्हा

मैं से मोक्ष...बुद्ध

मैं  नित्य सुनती हूँ कराह वृद्धों और रोगियों की, निरंतर देखती हूँ अनगिनत जलती चिताएँ परंतु नहीं होता  मेरा हृदयपरिवर...