मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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कितने जनम....लयबद्ध कविता
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Tuesday, 11 June 2019
कितने जनम..
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रह-रह छलकती ये आँखें है नम। कसमों की बंदिश है बाँधे क़दम।। गिनगिन के लम्हों को कैसे जीये, समझो न तुम बिन तन्हा हैं हम। सजदे म...
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