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Tuesday, 11 June 2019

कितने जनम..

रह-रह छलकती ये आँखें है नम।
कसमों की बंदिश है बाँधे क़दम।।

गिनगिन के लम्हों को कैसे जीये,
समझो न तुम बिन तन्हा हैं हम।

सजदे में आयत पढ़े भी तो क्या,
रब में भी दिखते हो तुम ही सनम।

सुनो, ओ हवाओं न थामो दुपट्टा,
धड़कन को होता है उनका भरम।

मालूम हो तो सुकूं आये दिल को,
तुम बिन बिताने है कितने जनम।

ज़िद में तुम्हारी लुटा आये खुशियाँ,
सिसकते है भरकर के दामन में ग़म।

 #श्वेता सिन्हा


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