मन के पाखी
*हिंदी कविता* अंतर्मन के उद्वेलित विचारों का भावांकन। ©श्वेता सिन्हा
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ठाठ पत्तों के उजड़ रहे हैं...लयबद्ध.कविता
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Tuesday, 11 April 2017
ठाठ पत्तों के उजड़ रहे है
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टूटकर फूल शाखों से झड़ रहे है ठाठ जर्द पत्तों के उजड़ रहे है भटके परिंदे छाँव की तलाश में नीड़ो के सीवन अब उधड़ रहे है अंजुरी में कितनी...
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